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रिश्ते भाग-1

relations
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रिश्ते प्रेम के पनपे चाहिये । आपस‌ में भाईचार बड़ों का सुंदर मान‌ हो व छोटो‌ से प्यार व्यवहार हो । यही रिश्ते की पहचान हैं ।
कुछ पंक्तियाँ – जानता हूँ मतलबी दुनियां है सारी, नाते रिश्ते कच्ची मिट्टी से बने हैं।

बिखर जायेगें हवाऐं जब चलेगी,मेघ जो आकाश मे काले घने है। साथ चलने का भरोसा दिया मैने, बात से फिर अपनी कैसे मुकर जाऊं? सारथी हूँ सूर्य की पहली किरण का, अंधेरों से दोस्ती कैसे निभाऊँ?

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गीत बन जो धड़कनों संग रिश्ता धङकता है,भूलकर भी मैं उस रिश्ते को कैसे भुलाऊँ? सारथी हूँ सूर्य की पहली किरण का । जीवन में रिश्तों की कीमत हम कभी भी न लाएँ । छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव की गनीमत से बचें ।

वैसे भी तो रिश्तों के धागे बहुत नाजुक होते हैं।नासमझ हैं वे जो रिश्तों को हल्के में लेते हैं। एक बात और जो मैं मानता हूँ कि रिश्ते निभाने के लिए नम्र एवं कुशल व्यवहार होना चाहिए एवं सही से सदैव नियमित कुछ समय के नियोजन की भी दरकार है , पर रिश्तों की कीमत समझें एवं जीवन में उनकी अहमियत भी हम सही से जाने ।

अतः उचित है उसके लिए हम तैयार रहें क्योंकि रिश्ते सुखी जीवन का मजबूत आधार हैं ।रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के के दो पहलू हैं , कभी रिश्ते निभाते–निभाते रास्ते खो जाते हैं , कभी रास्तों पर चलते-चलते रिश्ते बन जाते हैं |

रिश्तों में वैसा ही संबंध होना चाहिए जैसे हाथ और आँख का होता है| हाथ पर चोट लगती है तो आँखों से आँसू निकलते हैं और आँसू आने पर हाथ ही उनको साफ करता है| वो रिश्ते बडे प्यारे होते हैं जिनमें न हक हो,न शक हो , न अपना हो न पराया हो न दूर हो न पास हो ,न जात हो न जज्बात हो आदि – आदि सिर्फ अपनापन का एहसास ही एहसास हो |

रिश्ते रेशम की डोरी के समान लचीले और नाजुक होते हैं।समय के बदलाव के साथ विवेकपूर्ण हमारे विचारों में बदलाव हो,यह अपेक्षित होता है जो आग्रही होता है,वो रिश्तों को संभाल नहीं पाता |
क्रमशः आगे ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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