सहिष्णुता भी बहुत बड़ा फैक्टर है रिश्तों को मजबूत बनाने में,सहिष्णुता के बिना सबके विरोधी विचारों में एकरूपता सम्भव नहीं हैं । हाथ की पांचों उंगलियां जैसे एक जैसी कभी नहीं हो ही सकती, लेकिन वो मिलकर जब मुट्ठी बनती है तो छोटी बड़ी की बात गौण हो जाती है ।
ताकत होती है मुट्ठी में और एक बात हमेशा मैने सुनी है”बंधी बुहारी लाख की, बिखरी बुहारी खाक की” यानी शक्ति केंद्रीकरण में है ,एकल में नहीं।विडम्बना है कि आज ज्यादातर लोग अकेलापन चाहते है “स्वतंत्रता “के नाम पर , वहां रिश्ते मजबुत नहीं बन सकते, रिश्तों की मजबूती के लिए कभी लँगड़ा, कभी गूंगा , कभी बहरा आदि बनना पड़ता है।
यानी सबके विचारों में मेल बिठाना पड़ता है, यही अनेकांत है और नय के द्वारा सबके विचारों में मुख्य और गौणके सिद्धांत को अपनाकर हर रिश्ते की पकड़ मजबुत बनाई जा सकती है। विवेक पूर्ण निर्णय लेकर रिश्तों की डोर को हर समय मजबुत बनाया जाता है।
रिश्तों के लचीलापन को सम्भालने में विश्वास का धागा बहुत मजबूत होना होता है । आज बड़ो का वर्चस्व उनके अनुभवों के आधार पर आंकने वाले बहुत कम मिलेंगे, उनको अपने युक्तिसंगत अनुभवों को समझाने के लिए जिस तरह समझ सके सामने वाले, वही तरीका अपनी परिपक्व बुद्धि से लेना पड़ता है, घर में बुज़ुर्ग की बहुत बड़ी अहम भूमिका होती है।
कम खाना, गम खाना और नम जाना आदि को वह अच्छे से समझता है,जिसको सही से अपनाकर वह रिश्तों की पकड़ को मजबुती से विश्वास के धागे से बांधे रखता है ।
एक बात और कि सदैव मुस्कुराइए क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है और सबसे बड़ी बात मुस्कुराइए क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता हैं ।
इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और रिश्तों में औरो के चेहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं , यही जीवन है, आनंद मुस्कराहट के साथ रिश्ते ही जीवन हैं।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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