वितराग भगवान के द्वारा प्रदत धर्म को मानने वाला जैनी होता है। इच्छा का परिमाण , भोग संग्रह का सीमाकरणं हो । हिंसा जन्य प्रसाधन सामग्री का अस्वीकरणं हो ।
अर्जन के साथ विसर्जन हो यह अनासक्ति अलबेली हो। जैनी जीवन शैली ,बनते -बनते बन जाए जन -जन की जीवन शैली । चारों तरफ खोज रहा खुशी वह तो भीतर में फंसी हैं । हम बाहर क्यों करें समय की बर्बादी।
ये विडम्बना गहरी है। जैन धर्म में विस्तार से कर्मो की वसीयत बतायी गयी है । हम उसमें मानें अपनी शख्सियत। इसका अंजाम यह होगा की हमे आत्म-काबलियत की पहचान होगी । आज इन्सानियत विडम्बना बनी हैं ।
क्या मानव की विडम्बना है । त्याग धर्म, भोग अधर्म यह वाणी केवल सुनी । परन्तु यह जीवन आचरण में नहीं उतरी हैं । त्यागी संतों की सेवा दर्शन करना चाहिये ।सिर्फ पैसों के पीछे नहीं भागना चाहिये ।
ऐसी विडम्बना से पूर्ण रास्ता में शान्ति से कैसे वास्ता हो सकता हैं । बड़ी विचित्र विडम्बना है ।सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ से भरा जमाना है ।
मदद लेते वक्त गुणगान करते है काम हुआ फिर सहयोगी की न पहचान है और जाने-अनजाने कोई हो जाये अगर भूल तो ताने हम भरपूर देते हैं । जिन्दगी भर नही भूलते हम उन बातो को जो हमे बेवकूफ बना रहे है इससे बङी क्या विडम्बना है ।
अनमोल मानव जीवन को माटी के मोल में बेच रहे है । हम जैन धर्म को आचरण में लाए । कहते है की आदर उसी का होता है जिसमें कुछ योग्यता हो ।
जो मांसाहारी और शराबी हैं उनका तो कभी भी होगा तिरस्कार । चाहे स्वधर्मी हो चाहे विधर्मी स्वागत व सत्कार उनका कौन करे ? वे कैसे मानव के पर्व त्यौहार आदि जिसमें सिर्फ शराब का सेवन हो?और होता हो साथ में मांसाहार!
जरा सोच कर करो तो सही विचार ? हम जैनी है हमारे आचार वीचार भिन्न है । हम इससे अपना कभी भी सरोकार नहीं कर सकते है । वे अपना करें हम अपना करें इन सबसे हमको
कोई सरोकार नहीं है ।
पर हम उनका अनुकरण अपनाये तो नहीं । जिससे हम जैनी होकर कह सकते है की हम किसी के साथ में अनुचित व्यवहार नहीं करते है । भगवान हम सबको सनमती दें की हम सबके साथ में करें उचित समुचित सद्व्यवहार ।
अनाचार न व्यभिचार आदि हमारे से न हो और समाचारी का ऐसा हमारे द्वारा पालन हो जिसमें अहिंसा का पालन हो । और न हो ऐसी हमारे द्वारा असुरीवृती जिससे की हिंसा को बढ़ावा मिले ।
न हो हमारे द्वारा कत्ल का घृणीत कारोबार । न बहे हमारे द्वारा खुनी नदियां । क्योंकि यह तो बिल्कुल भी समझ में नहीं आने वाला है जो की बदसलूकी भरा हिंसा का अबोध प्राणीयों से दुर्व्यवहार हो रहा है ।
चाहे बलीप्रथा हो कुर्बानी की करूण कथा आदि हमारे लिए सब निषेध है । क्योंकि सब जीव है कोई भी जीव मरना नहीं चाहता है ।
सहमती सहकार उसमें हम नहीं दे सकते है क्योंकि जैन धर्म के यह संस्कार नहीं है । हिंसा , ग़लत आचरण आदि से दूर रहे वही सच्चा जैनी है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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