यह शत प्रतिशत सच है कि जीवन उसका ही सुधरेगा जो ऑंखें बंद होने से पहले ही खोल लेगा । क्योंकि स्थायी खुशी उसमें नहीं है कि सब समय मनचाहा जो हम चाहें जिस समय मिलता जाए ।
हम सभी जानते हैं कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है। हर आत्मा अपना समय पूर्ण होने पर इस संसार के सभी रिश्ते-नाते यंहिं समाप्त करके अपने किये गये कर्मों के अनुसार अगला रूप धारण करती है पर इंसान मृत्यु से पूर्व जो जीवन जी रहा है उसके बारे में कोई चिंतन करता है क्या ?
मुझे लगता है कि अधिकांश लोग इस जन्म की व्यवस्था और अपने परिवार वालों के भावी जीवन की चिंता आदि में अपना पूरा जीवन समाप्त कर देते हैं।
इंसान सब कुछ जानते हुये भी अनजान बना रहता है कि कौन से ग़लत क़ार्य करने से पाप के क़र्म बंधते हैं और कौन से नेक क़ार्य करने से पुण्य के कर्म अर्जित होते हैं।
जब इस संसार में जन्म लिया है तो इस बात का हर समय स्मरण रहे कि मुझे मनुष्य जन्म मिला है।मुझे अपना यह जीवन सात्विकता के साथ जीना है और जानते हुये कोई ऐसा ग़लत क़ार्य नहीं करना जिससे पाप के कर्मों का बंधन हो।
क्योंकि हमें मालूम है कि दुनिया से विदा होते ही हमारे द्वारा इस्तेमाल किए हुए सामान भी बाहर कर दिए जाते हैं। परन्तु आध्यात्मिकता की जिंदगी हम जिए तो कोई भी इसे बाहर नहीं कर सकता क्योंकि यह जाने वाले के साथ ही जाती है । अतः स्थायी खुशी उसमें है जो भी बिन चाहे ही जीवन में हमें मिले ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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