आकर्षण का अर्थ होता है अपनी और आकर्षित करने वाले। अब प्रश्न होता है की साधु – साध्वियाँ न मेकअप करते है , न साधु – साध्वीयों के पास गाड़ी है , न साधु – साध्वीयाँ परिग्रह रखते है , न साधु – साध्वियों का कोई घर हैं , न साधु – साध्वीयों विशेष परिस्थिति के बिना एक जगह स्थिर वास आदि करते हैं ?
आकर्षण किसका , क्या हमको साधुओं की और आकर्षित करती हैं आदि – आदि । साधु – साध्वियों के पास साधना संयम की ऐसी विशिष्ट शक्ति होती है जो स्वतः ही हम सबको आकर्षित करती है। मैंने कितने – कितने साधु – साध्वियों को कहा की एक सामायिक हम घर पर करते है एक सामायिक हम साधु – साध्वियों की सन्निधि में करते है।
है दोनों सामायिक लेकिन भावों का उद्वारोहण सन्निधि वाली सामायिक में ज्यादा होता है । क्योंकि इससे एक तो मन की चंचलता नहीं रहती , धार्मिक क्रियाओं में समय का सुन्दर से सुन्दर नियोजन होता रहता है। आदि – आदि अनेक बिंदु है । घर में सन्निधि जैसी सामायिक का लाभ नहीं मिलता है।
साधु को शुद्ध भावों से गोचरी की भावना भाना भी हमारे कर्मों का हल्कापन है। अगर साधु के कारण विशेष से घर में आना नहीं हुआ तो भी शुद्ध रूप से गोचरी की भावना भाने से भी हमारा कर्मों का हल्कापन हैं।
मैं छोटा था तो दादीसा बाईंमाँ आदि बोलते थे की पहले महाराज के दर्शन करो , माला फेरो आदि – आदि फिर प्रातः का नाश्ता है नहीं तो नहीं । पहले नासमझी हो सकती है परन्तु समझ आने के बाद इसका कितना महत्व होता है वो शब्दों में मैं व्यक्त नहीं कर सकता हूँ। भावों की धारा निर्मल बनती हैं।
साधु – साध्वियाँ अभी भी कितनी – कितनी बार फरमाते हैं की प्रातः काल साधु को वन्दन करने से कर्मों का हल्कापन तो होता है ही साथ ही साथ में अलग ही ऊर्जा का हम अनुभव करते है। जीवन मे जब सुख औऱ शांति की सरस फसल लहलहाती है तभी यह जिंदगी मौज और मस्ती का स्वाद चख पाती है।
यदि धन और ऐश्वर्य ही से जीवन में सुख मिलता तो साधु जीवन से सुख का स्रोत कैसे निकलता ? इसलिए असली मस्ती से जीने का स्वाद अलग ही होता है जहां आदमी भय मुक्त रहकर जगता है। और निर्भय होकर सुख चैन की नींद सोता है। शुभ स्वप्नों का सूर्य हमारे जीवन में उदय हो।
अरहन्त है प्रथम मंगल घाती कर्म क्षय कर पाएं हम। सिद्ध मंगल ,परम मंगल चरम लक्ष्य बनाए हम।साधु है तृतीय मंगल उनके मार्गदर्शन में चल पायें हम। केवली प्ररूपित धर्म सदा ही मंगल होता उसे जीवन में अपनाएं हम। चारों मंगल लोक में उत्तम चारों की शरण में सुरक्षित बन जाएं हम।
अहिंसा संयम और तप है मंगल। हमारा जीवन निखरेगा इनसे तो देवों से पूजित बन सकते हम । आने वाला समय साधु की संगत से मंगलमय हो मंगलमय बन जाएं हम। शुभ भावना भाएँ हम। आगे बढ़ते जाएं हम ।जीवन सफल बनायें हम।।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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