मानव जीवन के इस उतार – चढ़ाव रूपी गतिमान रहने वाले जीवन में हारा वही है जो लड़ा ही नहीं है । क्योंकि यह मानव जीवन सफलता-असफलता, आशा-निराशा, सुख-दु:ख आदि में रहने वाला ऊँच-नीच का झूला है।
यहाँ वही समझदार है जो सुख-आननद में नहीं फूला है और कष्ट को जीवन का आवश्यक अंग समझ समभाव से सहन कर उसे भूला है। जीव अनन्त की यात्रा करते करते मनुष्य जन्म को प्राप्त करता है । मनुष्य जन्म मिलना बहुत ही दुर्लभ है ।
पांच प्रकार के शरीर बताए गए हैं जिनमें दो शरीर तेजस और कार्मण शरीर हमारे पीछे ही लगे रहते हैं । जो कर्म हम करते हैं वो अगले जन्म में हमारे साथ जाते हैं , कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते हैं ।
कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है चाहे इस जन्म में भोगे चाहे आगे , अगले जन्म में भोगे । संसार का हर प्राणी किसी ना किसी रूप में दुःखी है । जो कर्मों का ही परिणाम होता है । सुख के बाद दुःख, दुःख के बाद सुख आता जाता है जैसे जैसे जो कर्म उदय में आते हैं उसी प्रकार सुख और दुःख आते जाते हैं ।
बड़े से बड़े महा पुरुष जैसे राम , कृष्ण , बुद्ध , महावीर , आदि आदि भी कर्मों से नहीं बच सके उनके जीवन में भी भयंकर कष्ट आए हैं । कर्मों की माया विचित्र है , कोई हंसकर काटता है तो कोई रो रो कर ।
इनसे कोई बच नहीं सकता हैं । समझदार व्यक्ति जो धर्म को समझता है जो धर्म की शरण में जाता है वह कर्मों को हंस कर काटता है क्योंकि वो जानता है कि बड़े बड़े महा पुरुष भी इनसे बच नहीं पाए तो हम कौन से बाग की मूली हैं ।
ज्ञानी जन हंस कर भोग लेते हैं और मूर्ख लोग रो रो कर भोगते हैं । समभाव में रहना ही जीवन की सार्थकता है । घटना के साथ मन को जोड़ने से ही सुख और दुःख की अनुभूति होती है । अपने मन को समझाना चाहिए कि समय है गुजर जाएगा ।
अपने मन को मजबूत रखने वाला व्यक्ति बड़ी से बड़ी बाधाओं को भी पार कर जीवन को सफल बना लेता है । दुख को सुख में बदलने की कला आनी चाहिए , दुःख में दुःखी नहीं होना चाहिए ।
जिसके जीवन में समता आ जाती है , जो समभाव में जीना सीख लेता है वह कभी घटनाओं से दुःखी नहीं होता उसका चिंतन बदल जाता है वह यही सोचता है कि समय है चला जाएगा फिर अच्छे दिन आयेंगे । यही दुख में से सुख खोजने की कला है ।
इसलिए परिस्थितियो से घबराना नहीं चाहिए उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए यही जीवन की सार्थकता है ।इस तरह वास्तव में जीवन में वही सफल हुआ है जिसने समझ लिया है कि कोई दु:ख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं है , यहाँ वही हारा है जो लड़ा ही नहीं है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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