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समाज और साहित्यकार : Samaj aur Sahityakar

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साहित्यकार लहरों से घबराते नहीं है तभी तो उनकी नौका पार होती है । साहित्यकार के द्वारा कलम की कोशिश कभी हार नहीं मानती है । साहित्यकार हर परिस्थिति और मन: स्थिति में सही से अपना निरन्तर संतुलन रखते है ।

साहित्यकार का उद्देश्य मात्र लिखना ही नहीं होता, बल्कि उसके कई अन्य मकसद भी होते है। लेखन कला व्यक्ति के भीतरी शक्तियों का विकास है जो स्वतः नित नये भीतर विचार विकसित करता है। वह इससे मस्तिष्क का भी विकास होता है ।

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लेखन से किसी भी विशिष्ट कार्य का साहित्यकार के द्वारा प्रयत्न करना हाथ में होता है , परिणाम उनके हाथ में नहीं है लेकिन बात को स्पष्ट कर कारण और निवारण आदि का उल्लेख आधार अपने चिन्तन को सही से वह प्रस्तुत करते है जिससे समाज में उसके सही से सकारात्मक परिणाम आने को विश्वास कायम हो जाता है ।

साहित्यकार की बात समाज में कलम से पुरुषार्थ की प्रेरक प्रेरणा नया उत्साह उमंग जोश आदि भर देती है, मानो वह गागर में सागर को समावेश कर लेते है । वह साहित्यकार कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है वह बात को लेखन से सूक्ष्म विश्लेषण करके भी समस्या के समाधान के सूत्र भी साथ में दे देते है।

इस तरह साहित्यकार मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखते है जिससे मानवता की प्रभा से भाषियों का जीवन महक उठता है । साहित्यकार समाज में अमूलचूल परिवर्तन की धुरी होते है । साहित्यकार कलम से दुनिया में अपनी पहचान रखते है ।

हम देखते है कितनी- कितनी बार पाठक को रचना से उसके लेखक का नाम स्वतः मालूम हो जाता है । साहित्यकार शब्दों के भण्डार है और साहित्य के दर्पण है ।

साहित्यकार को लेखक के रूप में स्थापित होने पर समय अवश्य लगता है लेकिन उसके बाद वह समाज की धुरी होते है ।

साहित्यकार किसी विषय बात को सही से उठा कर उसको विश्व के संज्ञान में लाते है क्योकि साहित्यकार युग की नब्ज को सही से पहचानने वाले होते है ।

वह साहित्यकार को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से सब जगह विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है ।साहित्यकार अपने जीवन को शुभ उद्देश्यों और शुभ संकल्पों के लिए तैयार करते है , कहते है कि साहित्यकार अपनी सारी शक्ति सृजनात्मक, रचनात्मक आदि कार्य में लगाते है ।

साहित्यकार को दूसरों की बुराई और दोष देखने का वक़्त बहुत ही कम मिलता है क्योंकि दुनिया में जितने भी महान व्यक्ति जो कलाकार, कवि, साहित्यकार आदि हुए है वो केवल इसीलिए सफल हो पाए क्योंकि वो प्रत्येक पल अपने ध्येय , अपने जीवन के उद्देश्य व अनुष्ठान आदि में सतत संलग्न रहे है ।

साहित्यकार आँखों में शांति, गीत, श्रद्धा, मृदुता, समर्पण आदि गरिमामय जीवन और व्यक्तित्व के धनी होते है। साहित्य और धर्म का सुंदर समन्वय साहित्यकार के द्वारा ज्ञान सागर लहराने वाला होता है ।

साहित्यकार आनंद के लोक में ले जाने वाले क़लम के कृति रत्न समुद्दभूत होते है । वह साहित्यकार एक समाज सुधारक- सूर्य सम प्रखर ओजस्वी- तेजस्वी-पुरुषोत्तम होते है |

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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