कहते है कि शालीन बात को या अन्य बात को हम सही लहजे में कह दे तो समस्या कही रहेगी ही नहीं । मैंने जीवन में देखा अनुभव किया है कि ज्यादा समस्या का उत्पन्न होना सही लहजा का अभाव ही हैं ।
आज के ज़माने में तेज़-तर्रार कोई नही सुनता है इसलिये हमें सख़्ती की जगह नरमी से बात रखनी आनी चाहिए क्योंकि तमाम लहजों में लहजा वही अच्छा रहता है जो प्यार का है।
तभी तो मीठे एवं नरम शब्दों में ही बात अच्छी लगती है इसके विपरीत कडवे एवं चीख कर कहे शब्दों का मतलब गलती को ठीक करना नही बल्कि व्यक्ति को गलत सिद्ध करना होता है इसलिए कहिए मगर प्यार से क्योंकि कर्म ही दण्डित करते है और कर्म ही पुरस्कृत करते है ।
इस सृष्टि का आधार ही कर्म है। कोउ न काहु सुख दुःख कर दाता निज कृत करम भोग सुनु भ्राता कर्म के उत्तराधिकारी हम स्वयं ही होते है । इसे हम किसी ओर पर दोष देकर छूट नही सकते हैं ।
कर्म भूमि की दुनिया में,श्रम अपने को करना है भगवान सिर्फ लकीरें देता है,रंग हमें ही भरना है इसलिए दंड या पुरस्कार अपने अपने कर्म पर निर्भर है।
तभी तो कहा है कि फलों का राजा होकर भी आम किलो के भाव बिकता है जब कि श्री फल संख्या के हिसाब से सबका अपना कर्म-अपना गर्व ।
आपसी बातचीत या बहस आदि में यह कम माने रखता है कि हम क्या कहते हैं अपितु मतभेद की जड़ हम है किस लहजे से बात कहते हैं। यह लहजा ही है जो हमारे शब्दों में भाव भरता है।
अच्छा या बुरा , ताना या प्रशंसा , सद्भाव या दुर्भाव , प्यार भरा या उसका अभाव आदि-आदि अतः आपसी व्यवहार को यदि मधुर रखना है तो लहजे को नरम सुमधुर बनाइये।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
यह भी पढ़ें :-