सामायिक एक प्रकार से एक मुहूर्त की समतामय अंतर में रमण की साधना हैं जो साधुचर्या की तरह वीतरागता की आराधना हैं । सामायिक अंतर्मुखी होने की विधि है ।
सामायिक आत्मा को विभाव से स्वभाव में लाने की विधि है । सामायिक धर्म की निष्पत्ति हैं । उपवास में भूख सहनी होती हैं ।आतपना में ताप सहना पड़ता हैं ।
सर्दी भी सहन करनी पड़ती हैं , किंतु सामायिक में तो कोई कष्ट नहीं होता । बस , आसन जमाया और आराम से ध्यान , स्वाध्याय की क्रिया में रम जाओ।
कष्ट कहाँ हैं सामायिक में ? सबसे सरल क्रिया हैं सामायिक करना । सामायिक कितनी करते हों , इससे कोई मतलब नहीं हैं। सामायिक में आलोचना हमने कितनी करी ?
राग – द्वेष के कितने प्रसंग आए ? क्या कलह और संघर्ष की स्थिति बनी ? इन सबको देखने से सामायिक प्रायोगिक और व्यावहारिक बन जाएगी ।
सामायिक करके उठे और लड़ाई – झगड़ा शुरू कर दिया । इसलिए सामायिक करने के बाद उसका लेखा – जोखा भी ज़रूरी हैं कि समता की साधना वाली इस प्रक्रिया का जीवन पर कितना प्रभाव पड़ा ? राग – द्वेष , आवेश , तृष्णा , लोभ कितना कम हुआ ?
कषाय कितने मंद हुए ? यह सामायिक का व्यावहारिक रूप हैं । साधु – साध्वियों के जीवन भर की सामायिक हैं । इस तरह हमारा यह चिंतन हो कि सामायिक ने हमारे जीवन पर अब तक कितना प्रभाव डाला ? रागात्मक प्रवृति हमारे द्वारा कितनी हुई ?
हुई तो कम हुई या ज्यादा हुई ? इसका विश्लेषण करना हमारा सामायिक दिवस पर उद्धदेश्य होना चाहिए ।सामायिक करने वाला राग – द्वेष को कम करने की साधना करता हैं ।
राग – द्वेष को कम करना ही सामायिक का उद्देश्य हैं । सामायिक करने वाला अतीत का शोधन करता हैं । अतीत का शोधन किए बिना वर्तमान का सुधार नहीं किया जा सकता हैं ।
इसलिए अतीत का आलोचन और भविष्य के लिए संकल्प – यही सामायिक दिवस का उद्देश्य होना चाहिए । इस आधार पर हम कह सकते हैं कि सामायिक करने वाला इस दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति होता हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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