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संस्कार अन्तरा -1

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आज के बच्चे नौनिहाल कल के होंगे ! बच्चों की परवरिश जैसी होगी सीरत भी वैसी होगी ! हर माँ बाप की हसरत होती है कि मेरे बच्चे हो सु संस्कारी ! मॉ बाप प्रथम गुरु होते है ।

शिक्षा और धर्म गुरु भी सुंदर जीवन दर्शन देते हैं वह संस्कारी बनाते है बिन उनके सभी का जीवन दिशा हीन होता है । हमारे संस्कारी जीवन में हमारी हर कोशिश हर काम को आसान बना देती है और हमें आसानी से मंजिल तक पहुंचा देती है ।

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हमको मंजिल पर पहुंचाने के बीच या तो अनुभव मिलता है और या सफलता की सुन्दर कोई लय मिल जाती है। मानव में संस्कार अच्छे होने चाहिए जिससे हमारे द्वारा बड़ों को नियमित प्रणाम करने से आयु, विद्या, बल, यश आदि हमारा बढ़ता है, वह साथ में हमारे मनोवैज्ञानिक भी असर पड़ता है।

बड़ों के पैर छूना केवल परंपरा ही नहीं, यह एक विज्ञान सम्मत भी है।वह इससे शारीरिक, मानसिकता और विचारों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है । यह एक प्रकार का सुक्ष्म व्यायाम भी है।

मानव के स्वभाव , प्रकृति की सही पहचान आदि – आदि उसके संस्कार से होती है । कहते है कि मनुष्य के अगर संस्कार पुष्ट है तो वह कहीं भी हो सदैव गलत से बचता रहेगा ।

मेरे जीवन का एक घटना प्रसंग मेरे दोनों पाँवो में बीमारी ( जो अभी भी मेरे पाँव में बीमारी है ) का डॉक्टर के द्वारा ऑपरेशन किया गया उसके बाद में कुछ समय बाद मुझे डॉक्टर ने कहा चाय पीना तो मैंने तुरन्त वही डॉक्टर को दूसरी चीज लेने को कहा और धर्म का मर्म बताया तो डॉक्टर बोले – आश्चर्य होता है इतने अच्छे लेखक हो और लगभग 40 वर्ष से ऊपर हो गए चाय नहीं पीते हो धर्म को मानते हो , धर्म का मर्म भी जानते हो , इतने भले इन्सान हो , वह जो बोलते हो वो करते हो तुम्हारा जीवन तुम्हारी कलम एक है तभी तुम क़लमकार हो ।

मैं लेखन तुम्हारे पढ़ता हूँ मुझे बहुत ख़ुशी होती है तुम्हारे लेखन से तुम्हारे भाव जिंदगी की घटना व धर्म को समझकर , जानकर आदि – आदि निरन्तर आगे भी अपना कार्य करते रहना हालाँकि मेरे पास समय का बहुत अभाव है फिर भी कभी मौका मिलता है तो मैं अवश्य तुम्हारा प्रतिदिन का लेखन पढ़ता हूँ ।

वह आगे अपने जीवन में सदैव अपने गुरु का अपने ज्ञान से विश्व पटल में मान अपने लेखन से बढ़ाना क्योंकि कथनी- करनी एक वाले सदैव सभी चुनौतियाँ से पार होकर आगे बढ़ते है और अपनी मंजिल पाते है आदि – आदि वह मुझे बोले ।

( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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