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संस्कार अन्तरा -3

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इसलिए आज के समय चिंतन का मुख्य बिंदु यही दर्शाता है कि बड़ी मुश्किल से यह मिनख जमारॉ मिला है हम क्यों अपनी ग़लती छुपाने के लिए झूठ बोलें और क्यों किसी अन्य प्राणी के साथ फ़रेब करे ।

यह हो सकता है कि हमारे इस फ़रेब का फ़ायदा सभी निकट के रिश्तेदार को मिले पर हमारे कर्मबंधन हो गए । वह साथ में जब उस फ़रेब का भाण्डा फूटता है तब किसी को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहते है ।

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वह उसकी वर्षों की कमायी इज़्ज़त उसी समय मिट्टी में मिल जाती है।वह उस ग़लती का
पश्चयाताप उसको ताउम्र खलता है इसलिए झूठ बोलना और फ़रेब करना हर दृष्टि से घाटे का सौदा है।

अतः कहते है कि सभी मनुष्यों में कर्मों का हल्कापन समान नहीं होता है इसीलिये जन्म से जीनियस होना आसान नहीं है।हरेक मनुष्य में विकास की दर अलग होती है। वह कौशल ,दिमाग़ व शक्ति आदि सभी सबल रूप से समान नहीं होती है ।

जीनियस सिर्फ़ वह नहीं होता जो अद्भुत काम दिखाये व नये-नये आविष्कार करे बल्कि जीनियस वह भी होता है जो जीवन की हर परिस्थिति में आनंदित जीवन जीने की कला व सदसंस्कार व अपने जीवन के आचरण से दूसरो के सामने साक्षात लायें व सिखायें ।

इन्सान जन्म से ही जीनियस होता हैं यदि उसके सही से बोद्धिक विकास व योग्यताओ पर किसी का हस्तझेप नहीं हो और संस्कारो का सही से बीजारोपण हो वह कोई भी उस पर अपनी मर्ज़ी , न कोई दिशा-निर्देश आदि न धोपे ।

जीवन में धार्मिक संस्कार व सद्गुणों का बीजरोपण व विकास आदि आगे प्रगति के सोपान चढ़ाता है । इस तरह हम जीवन में बिना किसी को कष्ट पहुँचायें , अहिंसक मार्ग को सही से अपनायें ।

वह अपनी रुचि व मेहनत आदि के साथ सही से संस्कारो से युक्त जीवन में आगे बढ़ते जायें। वह स्वयं से स्वयं का संस्कारों के द्वारा अच्छा से अच्छा उतरोत्तर निर्माण करें । वह हम जन्म से ही संस्कारों से ओत- प्रोत हो जीनियस कहलाते जायें । यही हमारे लिए काम्य है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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