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बेटियों का स्वावलंबी : खण्ड-1

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आज के समय में बेटियाँ बेटों के बराबर है या मैं कहूँ कि बेटियाँ बेटे से कम भी नहीं है । हर जगह बेटियाँ अपने जीवन में अच्छे से कर्तव्य का पालन करती है ।

शिक्षा में भी बेटियाँ ऊँचे शिखर प्राप्त कर रही है । इसके परिणामस्वरूप बहुत हम अच्छा सुखद देख सकते है कि जैसे बेटियाँ पिता को किसी न किसी रूप में योगदान दे घर चला रही है , बेटी अपने क्षेत्र में सफलता पाकर माँ- बाप का सम्मान से सर ऊँचा कर रही है ,बेटी पढ़ाई के साथ – साथ अपने माँ- बाप का सही से ईलाज भी करवा रही है आदि – आदि ।

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अब प्रश्न आता है कि बेटियों का स्वावलंबी क्यों? क्योंकि बेटियाँ भी आज के समय में हर जगह कदम से कदम मिलाकर चल रही है और कहीं – कहीं तो हम देखते है कि बेटियाँ बेटो से आगे ही चल रही है ।

आज के समय में कब क्या परिस्थिति जीवन में आ जाये तो इसके लिए बेटो की तरह बेटियों का भी स्वावलंबी होना बहुत- बहुत जरूरी है ।

बेटियों का भी अपना जीवन है , वह अपने जीवन के सपने देखती है और उनको अपनी मेहनत लगन निष्ठा से पूरा कर सफलता प्राप्त करती है । बेटियाँ भी अपना सही से स्वावलंबी जीवन बना स्वाभिमान के साथ जीकर अपने आप को प्रसन्न व सुखी रखना चाहती है ।

आज के समय में हम यह भी देखते है कि पुराने समय घर का हर काम प्रायः घर के सदस्य ही सम्पादित करते थे।यही प्रक्रिया हर बच्चे की ट्रेनिंग की शुरुआत होती थी।

जब कोई काम करोगे तो कभी ग़लत होगा तो कभी चोट भी भी खायेगा।इसी तरह हर बच्चा स्वावलंबी बन जाता था।जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी कठिनाई आसानी से झेलने में सक्षम हो जाता था।

समय क्या बदला सब कुछ बदल गया।बच्चे को काम सिखाने की जगह उसको पढ़ाई पर ज़्यादा जोर दिया जाता है।वो पढ़-लिख कर बड़ा ओफिसर तो बन जायेगा,पर जब हाथ से काम करने की नोबत आती है तो दूसरे लोगों की तरफ़ झाँकने को मजबूर हो जाता है।

हाथ से काम नहीं करने की वजह से उनका इम्यूनिटी पावर भी कमजोर होता है।थोड़ी सी बीमारी आने पर बिस्तर पकड़ने की नोबत आ जाती है।आजकल के बच्चे थोड़े से प्रतिकूल समय आने पर धेर्य भी खो देते हैं।
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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