कहते हैं कि शब्द तो वही पर होते है पर जरूरत है शब्दावली के क्रम में पूरा ध्यान रखना क्योंकि शब्दों के इधर-उधर होने मात्र से ही पूरा का पूरा संज्ञान बदल जाता है।
अभिव्यक्ति मे अगर मधुरता है तो वह,परायों को भी अपना बना लेती है। कर्कश वाणी,पीढ़ियों के मधुर रिश्तों को क्षणभर मे मिट्टी मे मिला देती है। व्यंगपूर्ण कटाक्ष की कुक्षी से ही तो जन्मा था महाभारत जैसा भंयकर युद्ध।
वाणी मे वह ताकत है जो जहर को अमृत और अमृत को जहर बना देती है। लफ्ज़ का नहीं लहजे का असर होता है, लफ्ज तो चोरी या उधार से भी आ जाते हैं लेकिन सही लहजे वाला व्यक्ति अग्रसर होता है या यूं कहें कि सही लहजे वाले का ही घर बसर होता है।
लहजे में छिपे रहते है सवाल और जवाब लहजे से ही खिलते हैं गुल और गुलाब, लहजे से कहे जाते हैं आफताब और महताब तथा लहजे से ही पहिचाना जाता है गरीब और नवाब।
कड़वा है लेकिन सत्य तो यह भी है लफ्ज नहीं, लहजा चुभता है । अत: कहने का लहजा सही हो ,नरम और मधुमय हो तो वह सहज ग्राह्य है , गरम लहजा या व्यंग्यपूर्ण उलाहना सदा त्याज्य है।
प्यार से कहकर हम सौ काम करवा सकते हैं जबकि ज़ोर से बोलकर अपनी इज़्ज़त को पल में मिट्टी में मिला सकते हैं।
ये तो बोली की गोली है- जो सही तरीक़े से सही निशाना लगायें तो सटीक काम करती है , वरना- अति बारिश की तरह उगी फसल को भी नष्ट कर देती है ।बोलने के लहजे को संयमित व विवेकपूर्ण बनाने की और हमे सदैव आगे बढ़ना है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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