विनम्रतापूर्वक आचरण और व्यवहार ,सभ्यता , शिष्ट आचरण , उत्तमता, श्रेष्ठता , आज्ञाकारिता आदि शिष्टता होती है। जो हमारे जीवन में झलकती हैं। कथनी और करनी एक हो हमारी सिर्फ थोथी बढ़ाई न करें ।
पहले कुछ अच्छा करें और फिर कुछ दूसरे को करने की सलाह दें।हमारी वाणी हित, मीत, और ऋत हो। चिंतन -मनन पूर्वक परिमित व संयमित आदि शब्द बोलें तभी सार्थकता है।
हमारे बोलने की नहीं तो चुप्पी ज्यादा अच्छी है। जिज्ञासापरक हमारी बोली होनी चाहिए विनीतता झलकें उसमें। हमारा मन संयमित होगा तब हमारी वाणी संयमित हो सकती है। हमारे मन में भावों के शुद्ध होने से वचन बनके बाहर झलकते हैं।
जो शिष्टता या धूर्तता के द्योतक होते हैं। मीठी और शीतल वाणी सब सुनना पसंद करते हैं।वाणी में मिश्री घुली हो वो सबके कानों को प्रिय लगती है।
कोवें की कर्कश बोली किसी को प्रिय नहीं लगती हैं । उसे सब उड़ाने के ताक में रहते है और कोयल की सुरीली आवाज सबके मन को भाती है । दोहा भी है –
वाणी ऐसी बोलिये,मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे,आपुन शीतल होय ।
सारगर्भित व सार्थक वाणी ,संयत वाणी की महत्ता को हम जान हमारे जीवन व्यवहार का एक अभिन्न अंग बनाकर सदैव हमारे जीवन को उज्ज्वल बनाएं सदा रहे यहीं मंगलभाव।
भरसक रहे प्रयास सबका जीवन के आचरण में उतारने का। बात के मायने एवं तर्क बोलने-बोलने के लहजे में फर्क बदल देता है। शब्द वे ही होते है एक शब्द हमें बोलने के लहजे से ही ले जाते हैं कहीं तो दूसरे पहुँचा देते हैं और कहीं। क्योंकि हमारा लहजा गर्म भी हो सकता है नरम भी।
या यो कहे की एक लहजे से बात सुलझ सकती है वही बात दूसरे लहजे में कहने से उलझ भी सकती है।
कोई भी बात एक लहजे में कहने से शालीनता और शिष्टता झलकती है ।उसी बात को अगर दूसरे लहजे में कहा जाए तो अशिष्टता टपक सकती है।
अतः बहुत आवश्यक है हर बात कही जाए शालीन लहजे में , सुंदर शब्दों में, सहज भाव में। ज्ञान नहीं वह अज्ञान हैं जहाँ इंसान को नहीं अपने अहम् का भान हैं।
क्योंकि सरलता ही असली ज्ञानी की पहचान हैं। अर्थ नहीं वहाँ वह अनर्थ हैं जहाँ व्यक्ति संपत्ति के मद में रत हैं । न आपसी रिश्तों का होश हैं। न शिष्टता की सौरभ हैं। ऐसी दौलत ऐसी शोहरत व्यर्थ हैं । शिष्टता हमारे उज्जवल जीवन में हर समय आवश्यक हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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