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भौतिकता की सार्थकता : Significance of Materiality

Significance of Materiality
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हम संसार में रहते है । हमको यहाँ रहने के लिये मकान और खाने के लिये खाना आदि सब मूलभूत आवश्यकता होती है। हर आदमी संसार से असार ( साधु जीवन ) में उद्धत हो यह भी सम्भव नहीं है।

संसार में रहते हुए जब हम भौतिक उपलब्धियों में सफलता प्राप्त करते जाते हैं तो हर दिन आगे से आगे ऊँचाइयों के माप छूते जाते हैं उस समय स्वाभाविक रूप से हम गर्व से फूले नहीं समाते हैं।

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ऐसे में विरले ही होते है जो शालीन और संयत रह पाते हैं। वैसे देखे तो भौतिक सम्पन्नता पाना व फलस्वरूप यश प्राप्त करना कोई बुरी बात नहीं है पर उसके मद में चूर हो जाना बुरा है।

वर्तमान समय में भौतिकतावाद की इस दुनियाँ में हम इतने मशगूल हो गये कि अर्थ की इस अंधी दौड़ में धन अर्जित तो खूब कर रहे हैं पर अपने मूलभूत संस्कार और आध्यात्मिक गतिविधियों से दूर – दूर जा रहे हैं।

आज जिसे देखो वो एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर में आर्थिक तरक्की तो खूब कर रहा है पर धर्ममाचरण में उतनी ही तेजी से पिछड़ रहा है।

जब हम अतीत में देखते हैं तो अनुभव होता है कि हमारे पूर्वज बहुत संतोषी होते थे।वो धन उपार्जन के साथ अपना धर्म आचरण कभी नहीं भूलते थे।

जब उनके अंदर आध्यात्मिक और धार्मिक आचरण कूट-कूट कर भरे हुये होते थे तब वो ही संस्कार वो अपनी भावी पीढ़ी को देते थे।आर्थिक प्रतिस्पर्धा से कोसों दूर रहते थे।

क़हते हैं कि अगर होड़ – होड़ लगाओगे तो संसार समुद्र में जन्म – मरण से निरन्तर दौड़ ही लगाओगे और आध्यात्मिक और धार्मिक गुणों से विमुख भी हो जाओगे।

इसलिये दौड़ जरुर लगाओ पर साथ में आध्यात्मिकता और धार्मिकता भी जीवन में धारण करनी चाहिये।

इसी तरह वास्तव में सम्पन्नता की सार्थकता तभी हैं जब हम सफलता में भी अपने अहं को छोड़ हम वहॉं पहुँच जायें जहॉं विवेक, विनय, शालीनता व निर्लिप्तता आदि का बोध हों।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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