आजकल यह आम बोल – चाल में हम किसी से भी सून लेते हैं की फ़लाँ फ़लाँ को यह समस्या हैं , बहुत दुःख हैं आदि ।
मज़ेदार बात इसमें और आ जाती है की ज़्यादातर लोगों की समस्या परिवार , समाज को पता होती हैं की इसको यह समस्या हैं या कुछ समय बाद मालूम पड़ ज़ाती हैं की यह समस्या हैं ।
परन्तु जानते – बुझते , समझते , सत्य को देखते हुए भी आदि निकटतम लोग , समाज इसके, समाधान के लियें कुछ करना तो दूर अपने स्वार्थवश इस्तेमाल करना , सामने वाले को नीचा दिख़ाना, इस अवसर का अपने हीत साधने के लियें किसी भी तरीक़े से ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग करना , मनगढ़ंत बाते करना व चलाना आदि में करते है ।
समाधान सामने होते हुए भी समस्या को जितना ज़्यादा उलझा सकें उतना वो अपने हिसाब से उलझायें रखते हैं भिन्न – भिन्न तरीक़े से ।
यह बहुत ज़्यादा विकट स्थिति हैं । इसको मैं एक घटना से रख रहा हुँ । जीवन में परिवार में उतार- चढ़ाव , सूख – दुःख आदि आते हैं , पहले भी आयें हैं और आगे भी आयेंगे ।
मैं सन्तों की सेवा कर रहा था कुछ समय बाद दो श्रावक – श्राविका बाहर से सन्तों की सेवा में आयें । मुनि श्री के उन्होंने दर्शन किये और अपना हालचल आदि बताया ।
मुनि श्री ने थोड़ी देर बाद कहा की इतनी दूर से आयें हो थके हुए हो थोड़ी देर आराम कर लो फिर सेवा कर लेना तो उन्होंने कहा हम बाद में आते हैं ।
उनके जाने के बाद मुनि श्री ने मुझे कहा की इनके पास पहले सब कुछ बहुत ज़्यादा सम्पन्नता थी आज हैं ठीक हैं परन्तु पहले वाली इनकी बात नहीं रही और दूसरी समस्यायें आ गयीं वो अलग । मैंने पूछा ऐसा क्यूँ ? तो मुनिश्री ने कहा की सुनो मेरी पुरी बात ये 5 भाईयों का परिवार हैं ।
5 भाईयों ने मिलकर दिन – रात मेहनत कर सबको साथ में लेकर , समझकर आगे बढ़ने के लियें सामूहिक क़दम रखे । प्रामाणिकता , अपनत्व आदि से व्यापार व परिवार में निरन्तर चलने लगे इसका परिणाम यह आया की इनका व्यापार , घर दिन -दुगनी व रात – चोगुनी यह बढ़ते गये ।
गाँव , समाज , रिश्तेदार , चोखला व बाहर भी इनकी ख़ूब कीर्ति बढ़ने लगी । इनका यह क्रम लम्बे सालों तक चला । इस दरमियान इनमे मैं बहुत ज़्यादा आ गयी यह छोटे – मोटे को इज़्ज़त से दो शब्द तो छोड़ो उनका अपमान भी यह बहुत करते थे । इनका परिवार बढ़ रहा था ।
फिर समय का चक्र घुमा परिवार के सदस्यों में सामूहिक से व्यगतिगत स्वार्थ हावी होने लग गया । जिनके पास पैसों व हिसाब किताब का अधिकार था उन्होंने पैसे अपने परिवार में देना व लेना आदि का काम भितरखाने कर लिया ।
जब पैसों की बात आती तो बोलना शुरू कर दिया की पैसे कहाँ हैं ? धीरे – धीरे परिवार की चमक फीकी पड़ने लग गयीं । परिवार में बड़े – छोटों में अनिती , पक्षपात , दुःख , रोगों , एक दूसरे को नीचा दिखाना आदि का बोलबाला होने लग गया । सामूहिक से सब व्यक्तिगत हों गये ।
परिवार से लक्ष्मी – रुठी वो अलग । चमक परिवार की फीकी पड़ी वो अलग । दुःख आये हुए वो अलग । तो मैंने कहा ऐसा क्यूँ हुआ ?
तो मुझे जवाब मिला की समय किसी का सगा नहीं होता व ग़लत लम्बा चलता नहीं । मेरी बात पुरी हुई इतने में वो आ गये ओर वो बोले की हमारी समस्या का समाधान कैसे हों जिसमें किसी को हमारी वजह से दुःख नहीं हों ?
तो मुनि श्री ने कहा की हर समस्या का समाधान समस्या में हैं और हमारा दिमाग समस्या के साथ अगर सामूहिक जुड़ जायें प्रमाणिकता से तो समाधान निश्चित आ जाएगा और यह समस्या समाधान का सरल व सुगम्य रास्ता हैं जों सभी के लियें हितकर हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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