हमारी आशा व विश्वास की दिशा सदा सकारात्मक हो, उसके साथ आगे के मार्ग का सदैव प्रयास से योग भी हो, सुयोग भी हो व ना कोई गति किसी दृष्टि से निराश करने वाली व भ्रामक हो।
क्योंकि हमारे भव-भवान्तर से अर्जित कर्म-श्रृंखला शुभ -अशुभ रूप में फल देकर निश्चित स्थिति के बाद निर्जरित होगी ही होगी । आवश्यकता है समभाव रखते हुए मनोबल और आत्मबल के साथ हायतोबा न मचाते हुए नए कर्मों की श्रृंखला के न वांछित करने की।
हमारे विवेक से हम ये समझते हुए की हर गहन अंधेरी अमावस्या आती हैतो पूर्णिमा की चांदनी बिखेरती रात भी आती है और रात के बाद सुबह और हर कर्म एक निश्चित समय के बाद उदय में आकर अपना फल देकर आत्मा से अलग होता ही है।
हम नए सिरे से और कर्म बन्धन से बचें , जागरूकता बरतते हुए और बंधे हुए को समतापूर्वक सहन करें आत्मविश्वास और मनोबल को मजबूत बनाते हुए। गतिशीलता ही जीवन है ।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। हमारे होंसले हमेशा बुलन्द रहे, चट्टान की तरह किसी भी परिस्थिति में हम कायर न बनें । जिंदगी परिस्थितियों से लड़ने का नाम है, डरने का नहीं।
कर्म के गहन बन्ध करने से डरें, बंधे हुए को भोगने में नहीं,क्योंकि हम कर्मबांधने में स्वतंत्र है,भोगने में नहीं , ये हमेशा हमारा चिंतन चलता रहे तो हम जागरूक रहते हुए कर्मबन्ध से काफी हद तक बच सकते हैं । हमारा मनोबल मजबूत हो तो सब कुछ सम्भव है ।
मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ये हम सब जानते हैं बस जरूरत है तो इसे किर्यान्वित कर सही से आगे बढ़ सफल करने की तो शुरुआत आज से ही नहीं ,प्रथम कदम अभी इसी पल से शुरू हो जाएं। यहीं हमारे लिए काम्य है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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