कहते है कि प्रतिशोध की ज्वाला, चेतना को कलुषित बना देती है। मात्रा का अन्तर हो सकता है,पर यह सभी मे रहती है।अप्रमत्त या वीतराग बनकर ही पा सकते हैं हम इससे मुक्ति क्योंकि यह मनोवृत्ति अवचेतन मन मे अनवरत बहती है।
आज के आपाधापी के जीवन में आदमी अति व्यस्तता में जीता है। ऐसे में विश्राम का अवकाश कहॉं मिल पाता है। वह फलतः बहुत बार बात-बात में तनावग्रस्त हो जाता है।
एक बार इसके चंगुल में जब फंस जाता है तो शीघ्र निकलना मुश्किल हो जाता है क्योंकि तनाव का पहला शिकार उसका विवेक होता है।
वह मतांध हो जाता है।उसकी संपूर्ण शक्ति नकारात्मता की ओर मुड़ने लगती है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि यह स्थिति हृदय रोग, अनिद्रा जैसे रोगों को जन्म दे सकती है।
वह आज के समय में हम देखते है कि समाज में सम्पन्नता बढी है। यह कथन सार्वभौम तो नहीं पर फिर भी काफ़ी हद तक सही है।
हर कोई सोचता है कि सम्पन्नता सुख, समृद्धि ,प्रसन्नता आदि लायेगी पर बात विपरीत ही है जिससे हिंसा व तनाव की वृद्धि हुई है।
हर रोज आदमी का , हर आने वाला दिन शंकाओं से घिरा हुआ आता है जिससे वह परेशान नजर आता है। हमारे जीवन में तनाव एक आम भावना है जो हमें तब होता है जब हम दबाव में, अभिभूत या सामना करने में असमर्थ आदि महसूस करते हैं।
यह तनाव आधुनिक जीवन शैली का अंग बन गया है। जन-जन को तनाव ग्रस्त देख महामारी का सा रूप हो गया है ऐसा लगता है । हमारी शारीरिक एवं मानसिक साम्यावस्था तनाव भंग कर देता है ।
फलतः तनाव नाना व्याधियों का जन्मदाता हो जाता है।यह साधारणतया अनिद्रा,चिंता अवसाद आदि का कारण मानसिक तनाव हो जाता है। एक बार यह होने के बाद समझदारी के अभाव में तनाव घर कर लेता है। समृद्धि का खुलमखुला
( क्रमशः आगे)
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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