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सफर चिंता से तनाव का : The Journey from Anxiety to Stress

सफर चिंता से तनाव का
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मानव जीवन में चिंता और तनाव साथ चलते है । चिंता व तनाव इस कारण होते ही हैं कि वर्तमान को छोड़कर मन अतीत या भविष्य पर भटक जाता है। मन की लोभी तृष्णा का कोई अंत नहीं होता।जैसे-जैसे सोचा हुआ हाशिल होता है वैसे-वैसे और नयी चाहत बढ़ने लगती है।

जिसका जीवन में कभी अंत ही नहीं होता। जीवन की इस आपा-धापी में जीवन के स्वर्णिम दिन कब बीत जाते हैं उसका हम्हें भान भी नहीं रहता।आगे जीवन में कभी सपने अधूरे रह गये तो किसी के मुँह से यही निकलता है कि कास अमुक काम मैं अमुक समय कर लेता।

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उनके लिये बस बचता है तो किसी के कास तो किसी के जीवन में अगर।तृष्णा तो विश्व विजेता सिकंदर की कभी पूरी नहीं हुयी और जब विदा हुआ तो ख़ाली हाथ।इसलिये कर्म ज़रूर करो और जो कुछ प्राप्त हुआ उसमें संतोष करना सीखो।जीवन की इस भागम-भाग में आख़िरी साँस कौन सी होगी वो कोई नहीं जानता।

जिसने जीवन में संतोष करना सीख लिया उसका जीवन आनंदमय बन गया। जब हमारा मन पॉज़िटिव होगा, तब हमें दिव्यता का अनुभव होगा क्योंकि सकारात्मकता वह निर्मलता की निशानी है और मन की निर्मलता, वही परम सुख है।

भगवान महावीर ने कहा है कि जो पॉज़िटिव रहेगा वही मोक्ष की ओर आगे बढ़ सकता है, इसलिए नेगेटिविटी से बाहर निकलना अत्यंत आवश्यक है।

अतः एक निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई दिखाई देती है एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता है। अतः हम समझें खतरे ही खतरे घर के बाहर हैं । वर्तमान क्षण ही हमारी चेतना का वास्तविक आधार है अतः रहिए आधिकाधिक इस घर में तो चिंता व तनाव रफू चक्कर हो जाएंगे।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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