हम देखते है वह इतिहास भी गवाह है कि ज्यादातर सफल व्यक्ति ने पहले असफलता का स्वाद चखा है , उन्होंने उसे एक सीख के रूप में लिया है ।
वह उनके हर संघर्ष उनकी हर असफलता उन्हें हर बार कुछ ना कुछ नया सीख देते गए जिससे उनके आगे के लिए सफलता के रास्ते और भी विस्तृत और भी पुष्ट होकर खुले ।
विश्व विख्यात गणितज्ञ आइंस्टीन जो बचपन में बार-बार असफल होने पर अपने को दिमागी कमजोर मान लेते तो आज वह विश्व विख्यात नहीं होते ।
थॉमस एडिसन ने 1000 से भी अधिक असफल परीक्षण किया फिर भी जब कोई उनको असफलता के बारे में पूछता तो वह यही कहते मैंने बल्ब तैयार न होने के हजार फार्मूले बना लिए असफल तो कभी हुआ ही नहीं , उनकी तरह यही विश्वास रखकर हम अपनी असफलता को सफलता में बदल सकते है क्योंकि परिश्रम और सकारात्मकता आदि जीवन में सफलता की कुंजी है ।
हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई योग्यता होती है जरूरत है बस ! उसको सही से पहचानने की वह यह पहचानना ही देर होती है ।जीवन में योग्यता के साथ-साथ पारिवारिक माहौल, सही समझ, भावनात्मक सुरक्षा, स्नेह, हौसला और जुनून आदि की भी विकास में जरूरत होती है।
हमको जीवन की परीक्षा में सदैव सफलता के लक्ष्य पर नजर गड़ाए रखना जरूरी है भले ही मार्ग में अनेकों अवरोध आए।
हम देख सकते है कि सकारात्मक सोच से जन्मांध श्रीकांत ने बोला कि मैंने अपने बलबूते पर 50 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी , इस तरह के सफल लोगों में हिम्मत और आत्मविश्वास भी अटूट होता है , जबकि जिनमें आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच, हौसला , जुनून आदि कि कमी होती है वे असफलता का स्वाद चखते हैं और फिर भाग्य को दोष देते हैं , वह इसके विपरीत जिनमें ये गुण होते हैं वे एकला चलो रे की शैली में आगे बढ़ चल देते हैं और अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं ।
अरुणिमा सिन्हा ने एक पैर गंवा कर भी एवरेस्ट फतह कर ली। ज्ञातअल्प,अज्ञात अनन्त है।ज्ञान सिन्धु का कहाँ अन्त है? जीता है जो समभावों में सही अर्थ मे वही संत है।
क्रमशः आगे
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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