जो अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा सन् १९४२ में प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जापान की यात्रा पर थे । उनके होटल के कमरे में बेल बॉय ने एक संवाद दिया।
जैसा कि रिवाज था उन्हें बेल बॉय को टिप देना था। उन्होंने टिप की बजाय कागज के एक टुकड़े पर खुश रहने का सिद्धांत लिखा और बेल बॉय को दे दिया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ वह कागज का टुकड़ा हाल ही में १५ लाख डॉलर में बिका।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने जो लिखा था, वह था A Calm And Modest Life Brings More Happiness Than The Constant Pursuit Of Success Combined With Constant Restlessness. सोचिए, एक सर्वाधिक प्रतिभाशाली मेधावी मस्तिष्क से कितने कीमती सलाह के शब्द निकले जो इतिहास बन गए और दूसरी ओर देखिए आज विश्व में अधिकांश लोग खुशी के बारे में क्या सोचते हैं।
आज हम अनवरत सोचते रहते हैं कि यह पाओ, वह करो, मेहनत करो, कठोर मेहनत करो और-और कमाओ आदि – आदि तभी हमें खुशी मिलेगी।
भारतीय संस्कृति में ऐसे जीवन को जीवन कहा गया हैं जिसमें शांति हो, पवित्रता हो, आनंद हो। क्योंकि इस संसार का सबसे बड़ा आकर्षण आनंद है ।
हंसना-मुस्कुराना एक ऐसा वरदान है जो वर्तमान में संतोष और भविष्य की शुभ-संभावनाओं की कल्पना को जन्म देकर मनुष्य का जीना सार्थक बनाता है।
आनंद की उपलब्धि केवल एक ही स्थान से होती है वह है आत्मभाव।हर स्थिति में सम बने रहना ही जीवन का वास्तविक आनंद है। वर्तमान की उज्ज्वलता से भूत चमकता ( कर्म खपाकर ) और भावी बनता है ।
हमे नकारात्मक चिंतन को छोड़ सकारात्मकता में बहना है। इसीलिए सह घोष यही हो वर्तमान उज्ज्वल करना है। अंतर्मन का जोश यही हो वर्तमान उज्ज्वल करना है ।
यह क्षण आनंद का क्षण है इसी में हमको जीना है । अतः खुशी की राह शांतिपूर्ण साधारण जिन्दगी जीना है न कि और-और के पीछे दौड़ते रहना। यही सभी शान्तिप्रिय व्यक्तियों का कहना है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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