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सोच और भावनाएं हैं अंतः गुफित

सोच और भावनाएं
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हमारे भीतर सोच और भावनाएं सदा अंतः गुफित है । हम हमारी सोच से कार्य करने की प्रवृति उत्पन्न कर आगे से संकल्प से उसको पूरा करने को भावनाओं से अंतः गुफित होते है ।

हमारे द्वारा किसी भी कार्य की जन्म स्थली मन की कल्पना होती है।हमारे मन में ना जाने कितनी कल्पनायें बनती है और ख़त्म होती है।वह उन्हीं में से एक़ाद कल्पना मन में स्थिर होती है और फिर उसके ऊपर सही से चिंतन-मंथन चलता है ।

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हम कोई भी नया कार्य में सफलता पाने के लिये उस कल्पना के बारे में दिन – रात चिंतन मंथन करते रहते और जंहा कमियाँ लगे उसे सुधारते रहते है । वह धीरे – धीरे हमारा यह प्रयास एक सही से सकारात्मक रूप लेकर सबके सामने प्रस्तुत होता है।

यह सही बात है कि कुछ सोचेंगे तो ही कुछ नया करेंगे वह अगर सोचेंगे ही नहीं तो क्या करेंगे ? इसके वैसे तो हज़ारों उदाहरण हैं एक उदाहरण यह है कि एक फ़िल्म का लेखक सबसे पहले एक विषय पर फ़िल्म बनाने का चिंतन करता है।

वह फिर उस पर कंहा-कंहा क्या सीन डालने हैं उस पर चिंतन करते – करते फिर एक फ़िल्म की कहानी तैयार होती है। अतः कुछ नया करने की जन्म स्थली सृजनात्मक कल्पनाशीलता है । वह जो व्यक्ति सृजनात्मक रचनात्मक कार्य में लग जाते है उन्हे कभी भी दूसरों की बुराई और दोष आदि देखने का वक्त नहीं मिलता है ।

वह इसी सन्दर्भ मैं मेरे साथ आज घटित घटना प्रसंग मुझे आज किसी ने कहा कि वो देखना वो करना आदि – आदि तो मैंने कहा मैं मेरे लेखन के कार्य को सुन्दर से सुन्दर उत्कृष्ट कर सम्पन्न करता जाऊँ तो भी मेरे कार्य चलते रहते है और मुझे समय नहीं मिलता है तो वह शांत हुआ ।

आचार्य तुलसी ने जो सपना संजोया वह आज हम सबके सामने विशाल धर्मसंघ की गरिमा को शत गुणित करनेवाला बना है ।

हमारे मन में गुंथी हुई सार्थक दिवास्वपन जीवन जीने की भव्यतम कल्पना का साकार रूप बनती है और वही हमारे सृजनशीलता में यथोचित रंग भरते है ।

वाल्ट डीजनी को अखबार संपादक ने यह कहकर निकाल दिया की उनके पास कल्पना और नए विचार नहीं है ।वही आज वह दुनिया का बेस्ट कार्टून क्रियेटर है ।

अतः मानव की कल्पना समग्र विश्व को भायी है जिसके चिंतन में सही सोच और भावनाएं आदि अंतः गुफित हों ज्योति जगमगायी है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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