एक ही चीज को देखने की सबकी अपनी अलग – अलग दृष्टि है पर उससे सत्य कभी खंडित न हो यह अनेकांतवाद ही तो उसकी जननी है । कहते है कि संकल्पों और विकल्पों के अन्तर- द्वन्द्व मे ,ये जिन्दगी यूँ ही बीत जाती है।
जिस ऊर्जा से सृजित हो सकते थे नये- नये कीर्तिमान,वो ऊर्जा निरर्थक ही रीत जाती है। जिन्हे सही से उचित मार्गदर्शन, दिशाबोध और दृष्टा का मंगल आशीर्वाद आदि – आदि मिलता है , वे जागृत चेतनाऐं जिन्दगी की जटिल जंग को , निर्विघ्न जीत जाती है।
इस कर्मभूमि की पाठशाला में जिसने अव्वल नम्बर पाया , वही इस दुनिया में अपना वर्चस्व स्थापित कर पाता है जैसे – तीर्थंकर , केवली , पाँच महाव्रत धारी साधु- साध्वी आदि – आदि । भारतीय संस्कृति में सहिष्णुता ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त अमूल्य ज्ञान है जो हजारों साल पूर्व का अवदान है ।
अनेकांत के दर्पण मे ही सदा सत्य के दर्शन होते है । स्वयं सूर्य का हर कण साक्षी बन तप से निश्चित तेज निखरता है । इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है, उङने को आकाश चाहिए पर बंधन मिट जाते सारे, अगर समर्पण श्रद्धामय हो।
आत्मा की सुंदरता पाने के लिए तो व्यक्ति में गुणों का होना जरूरी है,दिखने में बुरा होते हुए भी अगर कोई गुणवान और प्रतिभावान हो तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि जीवन की लंबी दौड़ में साँझ की तरह ढलते रूप की नहीं, बल्कि सूरज की तरह अँधेरे में उजालों को रोशन करने वाले गुणों की कद्र होती है।
वैचारिक मतभेदों, उलझनों, झगड़ो आदि से बचने के लिए व शांति की स्थापना के लिए भी भगवान् महावीर के अनेकान्तवाद का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है ।
यह अनेकान्तवाद वस्तु के विषय में उत्पन्न एकांतवादियों के विवादों को उसी प्रकार दूर करता है जिस प्रकार हाथी को लेकर उत्पन्न जन्मान्धों के विवादों को नेत्र वाला व्यक्ति दूर कर देता है।
अलग-अलग दृष्टि से देखने पर सत्यता अलग-अलग हो सकती है। एक ही वस्तु या विचार में कई गुण होते हैं जो हमारे अलग दृष्टिकोण से किसी को कुछ दिखाई देता है और दूसरे को कुछ अलग दिखाई देता है।
वस्तु या विचार की वास्तविकता और सत्य भिन्न हो सकते हैं। इसमे एक हाथी का उदाहरण लिया जा सकता है जिसे आठ अचक्षु छूकर अनुभव कर रहे किसी को उसकी पूंछ सांप जैसे तो किसी को सूंड अजगर जैसे – किसी को गिलास भरा दिखाई देता है किसी को आधा खाली तो किसी को आधी हवा आदि – आदि ।
हम जैनी है सौभाग्यशाली है कि भगवान महावीर का शासन मिला जिन्होंने अनेकान्तवाद का सूत्र दिया यानी– प्रत्येक वस्तु का भिन्न-भिन्न दृष्टि से विचार करना , परखना , देखना आदि – आदि ।
हम उदाहरण के लिए एक फल को ही ले लें , उसमें रूप भी है , रस भी है , गंध भी है , स्पर्श भी है , आकार भी है , भूख मिटाने की शक्ति है , अनेक रोगों को दूर करने की शक्ति और अनेक रोगों को पैदा करने की शक्ति आदि भी है।
प्रत्येक पदार्थ को अलग-अलग दृष्टि से देखना , समझना और सत्यता ये अनेकान्तवाद है । इसमें वाद विवाद को प्रश्रय नही है ।
इसे संसार जितना जल्दी व अधिक अपनाएगा, विश्व शांति उतनी ही जल्दी संभव है। जब एकांगी दृष्टिकोण विवाद और आग्रह से मुक्त होंगे, तभी भिन्नता से समन्वय के सूत्र परिलक्षित हो सकेंगे। जीवन का संपूर्ण विकास इससे संभव है।
हम सही से सहिष्णुता को अपनाकर भारतीय समाज को नहीं सम्पूर्ण विश्व को मजबूत और समृद्ध बना सकते है । यह बहुआयामी विकास की ओर अग्रसर करने में सहायक है । यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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