प्राय:आदमी यही समझते हैं कि हम स्वयं हाड़-माँस का कलेवर हैं और कुछ नहीं जिसको भगवान ने साँस रूप का फ्लेवर दे भर दिया है ।
इसीलिए तो निशदिन उसी को सजाने-सँवारने में हम लगे रहते हैं और उसको कोई थोड़ी भी हानि पहुँचाता है तो हमारे तेवर चढ़ जाते हैं ।
हम पूछें हमारे इर्द-गिर्द सही लोगों से कि हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है जो कम ही जानते हैं वह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश हैं । इसीलिए इन पाँच तत्वों के गुणों का हमारे अंदर सम्मिश्रण हैं ।
इसलिये मानव तो सदा हाड़-माँस का शरीर मात्र नहीं है क्योंकि शरीर को तो हमारे जीवनोपरांत यही रह जाना है पर यह बात हमारे ध्यातव्य हो कि हम सीमित नहीं है बल्कि आकाश की तरह असीमित है क्योंकि हमारे अंदर जल की शीतलता, अग्नि की उष्णता, पवन का प्राण-तत्व और पृथ्वी की उर्वरता है जो इन गुणों से लैस हमारी आत्मा को एक अजर-अमर शक्तिशाली करता है ।
इसलिये चाहे जैसा भी समय हो जिंदगी को क़रीब से जिया जाये । हमें मनुष्य भव मिला हैं इसके समय पर सदुपयोग करने में ही मज़ेदारी हैं वरना खोए पल बाद हम हाथ मलते रह जायेंगे ।
हमारे हौसलों के तरकश में कोशिश के तीर तो हैं पर अवसर की उम्मीद नही हैं इसलिए अवसर के मोती चुन लेने चाहिए । हम कोई भी परिस्थिति हो हमेशा धैर्यपूर्वक उसका समाधान विधायक चिंतन सोच से खोजे ।
गुरुदेव की अमृतमयी वाणी हमेशा स्मृति में रहे कि सदा रहे विधेयात्मक चिंतन ,क्यों उलझे निषेधात्मक भावों में।भावशुद्धि से हमारा चिंतन विवेक पूर्ण सही सोचने की शक्ति प्रदान करता है।
हम कभी भी किसी भी परिस्थिति में सम रहते हुए अपने देव, गुरु और धर्म की शरण पर दृढ़ आस्था रखे तो कभी भी हम अत्यधिक चिंतन में नहीं उलझेंगे शांतचित रहेंगे|
अतः सार की बात यह है कि जब तक हम जीवित है एक शक्तिशाली सत्ता है जिसका ( नश्वर शरीर ) हम सदा हर समय सही उपयोग करके अपने आगे के भव सुधार सकते है ।यही हमारा असली स्वरूप है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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