ADVERTISEMENT

वाह रे मनुज : Vaah re Manuj

Vaah re Manuj
ADVERTISEMENT

किसी भी जीव के इस भरत क्षेत्र में अगले पल की खबर नहीं है पर जीवन जीते हुए हम उम्मीदें न जाने कितने – कितने युगों की लगा लेते है ।

मनुष्य के लालच से तो अब इश्वर भी घबराता है वह हमको तथास्तु कहने से भी डरता है क्योंकि हम एक फूल चढ़ा कर पूरे गुलशन की आशा करते है।

ADVERTISEMENT

इसी सोच पर कहा है कि सच में रे मनुज ! तू भी एक नमूना है। ऐसा लगता है कि तू यदि न हो इस जग में तो मानो पूरा जग ही सूना है।

हमें यह दुर्लभतम मनुष्य जीवन पूर्व भव में सदकर्मो के कारण मिला है, अतः हम अहम् एवं परम् शत्रु गुस्सै, भौतिकवाद आदि सें दूर रहतें हुवें, हर परिस्थिति में सं रहतें हुवें, विवेक सें चिंतन एवं सभी के प्रति विनम्रता सें पेश आते हुवें, सभी के सुःख – दुःख में सहभागी बनते हुवें, त्याग – तपस्या, स्वाध्याय, साधना आदि करतें हुवें, इस जन्म का पूरा सार निकालते हुवें, हम अपने परम् धाम की और अग्रसर हों।

क्योंकि हर जीव को फल तो अच्छे बुरे दोनों ही कर्मों का निश्चित मिलता है , एक से जीवन खिल जाता है व दूसरे के जीवन का सारा ढांचा ही हिल जाता है ।

इसलिए कोई भी कार्य करने से पहले उसके फल व परिणाम पर विचार कर लेना बहुत जरूरी है । बिना सोचे समझे कर लेते है जीवन में व्यर्थ दुष्कार्य ऐसी कौनसी हमारी मजबूरी है । जो सोच-समझकर अपने जीवन का हर काम करते है वे जीवन निर्भीक होकर जीते है और निर्भीकता के साथ ही मरते है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

यह भी पढ़ें :-

मन चंगा तो : Man Changa to

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *