और न ही किया गया काम सफल हो पाता हैं। वह इधर देखे तो हमारा मन भी बड़ा चंचल है, वह हमेशा चलायमान ही रहता है जैसे धड़ी का पेण्डुलम की तरह ही डोलता रहता है, क्योंकि ज़रूरी नही की काम का बोझ ही इंसान को थका दे बल्कि कुछ ख़्यालों का बोझ भी मानव को थका देते है ।
हम जब तक मन से किसी कार्य को सही से स्वीकार नहीं करते है तो हमारे द्वारा जबरदस्ती करने से भी काम सफल नहीं होगा । जैसे विश्व विख्यात गणितज्ञ आइंस्टीन बचपन में बार-बार असफल होने पर अपने को दिमागी कमजोर मान लेते तो आज वह विश्व विख्यात नहीं होते |
थॉमस एडिसन ने 1000 से भी अधिक असफल परीक्षण किया फिर भी जब कोई उनको असफलता के बारे में पूछता तो वह यही कहते मैंने बल्ब तैयार न होने के हजार फार्मूले बना लिए असफल तो कभी हुआ ही नहीं , यही सही से आत्मविश्वास रखकर हम अपनी असफलता को सफलता में बदल अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते है ।
वह इसमें परिश्रम और सकारात्मकता सफलता की कुंजी है । आज के वातावरण में कोई एकदम स्वस्थ रहे यह असंभव लगता है।हर व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त दिखता ही दिखता है पर आज चिकित्सा के प्रति भी दृष्टिकोण बदल रहा है। वह बीमारी का भी वर्गीकरण हो गया है।
अतः चिकित्सा का तरीका भी शारीरिक के साथ-साथ मानसिक, भावनात्मक स्तर पर बँट गया है। वह इन तीनों स्तर की चिकित्सा के समन्वय से ही आदमी शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर सकता है।
वह इसी आधार पर औषधि के साथ-साथ प्रेक्षा ध्यान, आसन, प्राणायाम,पद्धति भी कारगर सिद्ध हो रही है । विज्ञान और आध्यात्म की यह समन्वयिक पद्धति धीरे-धीरे व्यापक एवं प्रसिद्ध हो रही है। इस तरह विज्ञान का हमारे जीवन के विकास में बहुत योगदान है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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