क्या आपने कभी गुरुग्राम जिस शहर में Pearl Culture ( मोती की खेती ) के बारे में सुना है? हरियाणा के गुरुग्राम जिले में एक इंजीनियर हर साल मोती की खेती करके चार लाख कमा रहा है।
वैसे तो मोती प्राकृतिक रूप से शीप के कोमल टीश्यू में पैदा होती है लेकिन कृत्रिम रूप से उसके अनुकूल वातावरण बनाकर मोती की खेती की जा सकती है।
इसके लिए मछुआरों से शीप खरीद कर उसके टिश्यू क्राफ्ट को निकाल कर दूसरे शीप में डाल दिया जाता है। इससे मोती की थैली का निर्माण हो जाता है और उसके टिशू कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में जमा हो जाते है।
कृत्रिम रूप से की जाने वाली इस प्रक्रिया को Pearl culture के नाम से जानते हैं और आज के समय में यह दुनिया का एक फलता फूलता व्यवसाय बन गया है।
हरियाणा के गुरुग्राम जिले में रहने वाले Vinod Yadav पेशे से इंजीनियर हैं। उन्होंने अपने घर के पीछे के हिस्से का लाभदायक इस्तेमाल करने के लिए वहां पर एक तालाब बनाया और अपने गृहनगर जमालपुर में एक बीघे की जमीन में मोती की खेती शुरू की।
गुरुग्राम जो कि एक सैटलाइट सिटी में Pearl की खेती करने वाले विनोद यादव एकमात्र किसान हैं। पहले उन्होंने 20 × 20 फीट का एक तालाब खुदवा कर मछली पालन के बारे में सोचा था ।
मत्स्य पालन के संबंध में अधिक जानकारी के लिए 2016 में वे जिले के मत्स्य विभाग भी गए थे लेकिन जमीन के छोटे हिस्से में मत्स्य पालन की यूनिट लगाने में परेशानी बन रही थी इसलिए उन्होंने मत्स्य अधिकारी की सलाह पर अपना फैसला बदल दिया।
गुरुग्राम के डिप्टी कमिश्नर विनय प्रताप सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जिला मत्स्य अधिकारी धर्मेंद्र सिंह ने ही Vinod Yadav को एक बार मोती की खेती करने के बारे में सुझाव दिया था।
उन्होंने ही विनोद को Pearl culture की एक महीने की ट्रेनिंग करने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर भुवनेश्वर भेजा था और मोती की खेती कैसे की जाती है इसके बारे में पूरी जानकारी और ट्रेनिंग वहां पर मिली विनोद को मिली।
Vinod Yadav जोकि एक इंजीनियर है आज मोती की खेती करके हर साल मुनाफे के रूप मे चार लाख से भी अधिक कमाते हैं। विनोद को देखकर दूसरे लोग भी इस तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
गुरुग्राम हरियाणा का पहला जिला है जहां पर मोती की खेती हो रही है। इस क्षेत्र में Vinod Yadav की सफलता को देखते हुए दूसरे जिले के लोग भी इसमें निवेश करके काम करने की सोच रहे हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में विनोद यादव ने बताया कि मत्स्य विभाग Pearl Culture करने वाले किसानों को सब्सिडी भी प्रदान करता है।
मालूम हो कि Pearl Culture के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का सेटअप लगाने के लिए लगभग 40 हजार की लागत आती है और 8 से 10 महीने में इस खेती में मोती की फसल उत्पन्न (पैदा) हो जाती है और इसे बेचकर मुनाफा कमाया जाता है।