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भौतिकवाद में कहाँ मानवता

भौतिकवाद में कहाँ मानवता
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भाग-1
इच्छाओं के समंदर को छोटे से घङे मे कैद किया जा सकता है।
सीमित संसाधनों के सहारे भी जिन्दगी को जिया जा सकता है।

जरूरी नहीं है मेवे,मिष्ठान, तामझाम आदि – आदि क्योंकि जीवन यात्रा के लिए पानी मे भी शरबत की मिठास का आनंद लिया जा सकता है। आज के समय का गहन चिन्तन का विषय भौतिकवाद है । आवश्यक और अनावश्यक दो शब्द बहुत अनमोल है ।

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हर क्षेत्र में चाहे वह खाने पीने पहनने ओढ़ने की वस्तु हो या हमारे दिमाग से सम्बंधित विषय हर जगह आवश्यक अनावश्यक का विवेक जागृत होने की अपेक्षा है । हम विवेक की छलनी से छानकर अनावश्यक कचरे को निषेधात्मक विचारों को छोटी सोच को दिमाग मे जगह न दें और न ही महंगे उत्पाद बढ़िया और टिकाऊ होते है के चक्रव्यूह में फंसे , सादा जीवन उच्च विचार हमारा ध्येय हो ।

शक्‍ल से खूबसूरत लोग दिल से भी खूबसूरत हों ऐसा जरूरी नहीं है, आत्‍मा की सुंदरता पाने के लिए तो व्यक्ति में गुणों का होना जरूरी है, दिखने में बुरा होते हुए भी अगर कोई गुणवान और प्रतिभावान हो तो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है, क्योंकि जीवन की इस लंबी दौड़ में साँझ की तरह ढलते रूप की नहीं, बल्कि सूरज की तरह अँधेरे में उजालों को रोशन करने वाले गुणों की कद्र होती है ।

अतः हम प्रतिदिन नियमित रुप से सही से आवश्यक और अनावश्यक बातो का लेखा जोखा करे तो जीवन के किसी भी मोड़ पर धोखा न खा पायेंगे । कहते है कि जो ( प्रसंग रूप में ) व्यापारी, प्रतिदिन अपनी आमदनी का हिसाब किताब,जैसे आज कितना कमाया कितना खर्च किया, कितना नफा ओर नुकसान आदि – आदि रखता है तो उसके लिए सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ना आसान हो जाता हैं ।

वह अनावश्यक बोलना, खाना,सोना कार्य करना या खर्चा करना आदि – आदि जो भी हो, नियम का अतिक्रमण होता है । आज की इस दिखावे की दुनिया मे,दिखावे के लिए लोग विदेश भ्रमण करने चल पड़ते हैं ।
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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