हमारे जीवन में उतार – चढ़ाव आते रहते है तो हम किसी के प्रति राग – द्वेष क्यों रखे । हमें कपट पूर्वक झूठ बोलने का तो पच्चक्खां ले लेना चाहिए , बहुत घातक है, ये हमारे आत्म-कल्याण में और पारिवारिक रिश्ते तोड़ने में और हर परिस्थिति में ही।
बात -बात पर झूठ बोलने की आदत भी अच्छी नहीं होती , ये दूसरे का तो नुकसान नहीं करती,लेकिन स्वयं के लिए कर्म बंध ही करवाती है। हमें विवेक होना चाहिए , कब झूठ का आश्रय लेना चाहिए।
अनेकांत का प्रयोग करते हुये किसी की प्राण-हानि का प्रसंग हो या रिश्तों में कटुता आदि आने से बचना हो तो हम गृहस्थी मौन साधकर भी नहीं रह सकते।
विवेकपूर्वक झूठ बोलने से भी हमे बचना चाहिये क्योंकि झूठ गलत होता है इसलिये टूटते रिश्तों को बचाने में अनेकांत दृष्टि अपनाना चाहिये जिससे ज्यादा बड़े कर्म- बंध का कारण नहीं होता और बार-बार उसके लिए झूठ का सहारा भी नहीं लेना पड़े ।
हमारे से अगर ऐसा भी नहीं होता तो हम विवेकशीलप्राणी हैं , हमें अपने विवेक का प्रयोग करके जहां तक संभव हो सके ,झूठ बोलने का परित्याग करना चाहिए।
महावीर के अनेकान्तवाद ने सबके विचारों का सम्मान किया , अहंतुष्टि की मिथ्या दीवार को एक पल में ढहा दिया । सबको अपने चिन्तन रखने का अधिकार दिया , मनभेद की कटुता को मतभेद की सरलता में मिला दिया ।
सबके अपने-अपने दृष्टिकोण हैं, सबके अपने मंतव्य हैं ,जाना पतंग को आकाश की ओर है, रास्ते अलग पर गंतव्य एक है। बिन बात के फिर ग़ुरूर क्यों ?
व्यर्थ हठ से मिलता अहंकार को पोषण है । अनेक बार होता इससे – मासूम , सरल मानव के विचारों का शोषण है । अत: उदारतापूर्ण नीति का हो अनुपालन , निर्बल-सबल ;सक्षम-अक्षम सबके चिन्तनों का अभिनन्दन हों ।
भगवान महावीर के अनुयायी हम हैं , उनके दिखाये महान अनेकान्तवाद के दर्शन को हृदयंगम करे । सबके नज़रिये का सम्मान रखे ।
कहते है कि जिसके दिल मे माफ करने और गलती को भूलने का भान रहता है वहाँ कटुता सुखी रेत के समान है जिसका कलह की दीवार पर चिपकना असंभव है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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