सुखः दुःख,लाभ,हानि आदि ये तो जीवन में उतार-चढ़ाव आतें ही रहेंगे । अतः हम विषम परिस्थितियों में भी सम रहतें हुवें, सुखः में अति उत्साहित न हों और दुःख में अति हताश न हों । दोनों ही परिस्थितियों में सम रहतें हुवें हँसी-खुशी अपनी जिंदगानी जीते रहे।
क्योंकि हमारा जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता है । इसमें बदलाव आते ही है ।सुख और दुख का आना-जाना लगा ही रहता है । जिस प्रकार रात के बाद सुबह होती है उसी प्रकार दुख के बादल छट जाते है और खुशी के दिन आते हैं ।
रात दुख का प्रतीक है और दिन सुख का जिस तरह पानी दो किनारों के बीच बहते हुए आगे बढ़ता है, उसी तरह जीवन में सुख और दुख दो किनारे हैं , जीवन इन्ही के बीच चलता है । एक निराशावादी हर अवसर में कठिनाई देखता है। एक आशावादी को हर कठिनाई में अवसर दिखाई देता हैं ।
जीवन का सुंदर स्वरूप हम किसी भी प्रकार से देख सकते है और उसे मनचाहा आकार दे सकते है । जीवन रूपी समरांगणम् में पतझड़ और बसंत आते रहेंगे , हंस-हंस सहते हर विपदा में हम वीर कहलायेंगे ।
सुख का रथ रुक जाए चाहे घोर निराशा में और दुख के बादल छाए पर जीवन का हर क्षण हमारे प्रयास रूपी जल के झरने समान बहता जाए । क्योंकि सावधानी रखने के बावजूद टूटी हुई जीवन डाली को विनय-विवेक की अमृत प्याली से हमको सींचना है ।
हर अवसर में विश्वास के श्रेयस्कर सिद्धान्तों से आगे बढ़ाना है ।अतः हमें किसी भी तरह की विपदाओं से कठिनाईयो से हार से हताश हुवें बिना, बिना रुके दुगुने उत्साह से अपनी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाते रहना चाहिए ।
संयत रह कर उसका सामना करना चाहिए । उसका स्वागत झट से कुर्सी दे कर न करें ।अगर हम ऐसा करेंगे तो हमसे कोई हमारी खुशी, हमारी हँसी कभी नहीं छीन सकता हैं । फिर देखें मंजिल (विजय) जीत,सफलता हमारें क़दमो में होगी।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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