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ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली यह महिला आज ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती करना सिखा रही

ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली यह महिला आज ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती करना सिखा रही
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कोरोना वायरस महामारी के चलते मार्च महीने से देश भर में लॉक डाउन कर दिया। एक तरफ जहां इस दौरान सोशल मीडिया पर तमाम सेलिब्रिटी काफी सक्रिय थे वहीं भारत की एक female shooter शगुन चौधरी उन दिनों ग्रामीण महिलाओं को ऑर्गेनिक फार्मिंग सिखाने में व्यस्त थी।

वह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जयपुर और आसपास के क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं को एकत्र करके उन्हें जैविक खेती (organic farming) सिखाने का काम सुरु किया है।

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शगुन चौधरी एक किसान परिवार से संबंध रखती हैं इसलिए उन्हें खेती के बारे में जानकारी थी। उनका परिवार सालों से कीनू की खेती कर रहा है।

जैविक खेती ही क्यो :-

Shagun Chaudhary  कहती हैं कि उनके लिए खेती करना एक नॉर्मल बात है क्योंकि वह बचपन से अपने परिवार में खेती होते देखी हैं और वह किसान परिवार से संबंध रखती है।

उनका परिवार कीनू की खेती करता है, लेकिन शगुन कीनू से आगे बढ़कर सब्जियों की खेती करने के लिए ग्रामीण महिलाओं को प्रेरित किया क्योंकि सब्जियाँ इम्युनिटी बढ़ाने में काम आती है। इन दिनों ऑर्गेनिक प्रोडक्ट की मांग तेजी से बढ़ रही है।

इससे सेहत भी अच्छी रहती है। सगुन कहती हैं कि वो लोग काफी मेहनत कर रहे हैं जिसके परिणाम अब अच्छे दिख रहे हैं।

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शगुन चौधरी शुरू में अपनी महिला टीम के साथ जयपुर स्थित अपने फार्म हाउस पर लहसुन, टमाटर और भिंडी की जैविक खेती शुरू की थी, साथ ही उन्होंने लगभग 800 कीनू के पेड़ लगाए थे और उनकी कॉमर्शियल सप्लाई करती थी।

अब वे सब्जियों की सप्लाई भी दिल्ली और जयपुर जैसे शहरों में करने में व्यस्त रहती हैं। बदलते वक्त के साथ पुरुष प्रधान सोच वाले समाज से अलग उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर लोगों को जवाब दिया।

आज कई सारी महिलाएं राजनीति से लेकर विज्ञान, मनोरंजन, खेलकूद हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। आज महिलाएँ किसी भी मामले में पुरुषों से पीछे नही बल्कि आगे देखी जा रही हैं।

राजस्थान की राजधानी जयपुर के रहने वाले शगुन चौधरी भी महिलाओं के लिए एक मिसाल है। उन्होंने ट्रैप शूटिंग में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था और ऐसा करने वाली वह भारत की पहली महिला शूटर है।

शगुन बताती हैं कि उनकी मां चाहती थी कि वह डॉक्टर बने लेकिन उनके पिता ने उन्हें बंदूक थमाई और उनकी रूचि के अनुसार उन्हें शूटिंग के लिए प्रोत्साहित करते रहे।

शगुन चौधरी बताती हैं कि उनका पालन पोषण एक ऐसे माहौल में हुआ था जहां उन्हें उनके भाई के बराबर ही आजादी मिली। बेटा बेटी में कभी उनके घर पर फर्क नही किया गया। यहीं से उनकी कामयाबी की नींव मजबूत हुई।

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शगुन का कहना है कि महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर होना चाहिए। वह अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहती हैं कि बिना भेदभाव के बहन बेटी को भी इस समाज में अपने सपने को पूरा करने की आजादी मिलनी चाहिए।

ताकि समाज में महिलाओं को भी समान अधिकार दिया जा सके। शगुन चौधरी लोगों को जेंडर इक्वलिटी के प्रति जागरूक भी करती हैं।

शगुन बना बताती हैं कि आज समाज में बदलाव दिख रहा है। ग्रामीण क्षेत्र और छोटे कस्बों में भी महिलाएं अब आगे बढ़ रही हैं और बदलाव हो रहा है। लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। इसे रफ्तार देने की ज्यादा जरूरत है।

शगुन कहती हैं कि 21वीं सदी में हर बेटी बहन को आवश्यक रूप से सक्षम होना चाहिए। नारी के सपनों के पर को कतरना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए कि वह अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं।

उन्हें मेहनत करने की आजादी देनी चाहिए जिससे वे अपने सपनों को पूरा कर सके और आत्मनिर्भर बन सके। कोरोना स्व प्रैक्टिस बाधित होने की वजह से अब वह हर रोज गन की प्रैक्टिस करती थी साथ ही वर्कआउट और मेडिटेशन भी करती हैं।

अगर शगुन चौधरी की तरह हर महिला की सोच हो जाए तो महिलाओं की बदतर स्थिति में बदलाव जल्द ही देखने को मिलेगा और हर महिला बराबरी का सम्मान पा सकेगी और आत्मनिर्भर होकर जी सकेगी और अपनी मेहनत के दम पर अपने सपने को पूरा कर सकेगी।

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