प्रश्न आता हैं कि स्वास्थ्य हैं क्या ? इसका सार रूप में उतर यही होगा हमारा शरीर का सदैव स्वस्थ रहना जिससे हम हमारी सारी क्रियाएँ शरीर के माध्यम से सुचारू रूप से सदैव करते रहे । एक अंग्रेजी में कहावत है कि HEALTH IS WEALTH. क्या सच में यह सही है ?
वर्तमान परिदृश्य में सही से देखने में तो यह आ रहा है कि धन के पीछे अन्धी दौड़ में लोग स्वास्थ्य-धन की एकदम अनदेखी करते जरा भी नहीं सकुचाते हैं और मज़े की बात है इस लापरवाही का स्वास्थ्य पर साक्षात विपरीत प्रभाव का हम सही से भान ही नहीं कर पाते हैं , तब चिन्तन आता हैं कि क्या स्वास्थ्य ही धन है यह बता कर चले जाने वाले वह है आदि – आदि इसके सही अर्थ से सदैव अनजान थे ?
या समझदार से समझदार भी आज इसकी जाने – अनजाने अनदेखी करने वाले स्वास्थ्य शब्द का ही अर्थ नहीं जानना चाहते? वैसे तो पहला सुख निरोगी काया और दूज़ा सुख घर में हो माया होता है पर आज यह बात अतीत की हो गयी है ।
हमारे बच्चे व हम आदि आज कहते हैं पहला सुख घर में हो माया बाक़ी सब बाद में क्योंकि आज जिस माहौल में जी रहें हैं ,हम अर्थ तो ख़ुब अर्जन कर रहें है,पर अपना स्वास्थ्य खो रहें हैं । संसार में आधुनिकता, प्रतिस्पर्धा और वैभव आदि की इस अंधी ज़िंदगी में हम धन के पीछे इस तरह भाग रहे है कि समय पर खाना,सोना और अपने परिवार वालों को समय देना आदि – आदि सब गौण कर दिया हैं ।
धन से बहुत सारा सामान ख़रीद सकते हैं परन्तु शांति नहीं , धन से दवाई खरीद जा सकती है परन्तु स्वास्थ्य नहीं आदि – आदि इसीलिए धन को सर्वोपरि न
क्रमशः आगे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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