आजकल कोई भी काम हो कह देते है गूगल में देख लो वहाँ सब कुछ दिखता है । इसी सोच में मैंने एक दिन गूगल पर स्वयं को खोजनें का काम किया तो मुझे इसका उतर नहीं मिला क्योंकि गूगल में सब कुछ मिल जाता है लेकिन ख़ुद का पता तो स्वयं से ही मिलता है।
किसी ने एक प्रसंग में कहा कि भाई तुम हमको भूल गये हो उतर में उसने कहा की यहाँ तो ख़ुद से मिले हुए ही जमाना हो गया है और तुम बात कर रहे हो भूलने की ।
बिल्कुल सत्य कथन है यह आज के परिप्रेक्ष्य में क्योंकि इस भौतिक चकाचौंध में मानव को स्वयं को जानने का और स्वयं से मिलने का समय ही नहीं है ।
हम अपने सहज स्वभाव में रहें क्योंकि घर में, समाज में सब मनुष्यों के स्वभाव मिलना सम्भव ही नहीं है क्योंकि अपने अपने कर्मसंस्कारों के अनुरूप कोई किस गति से अवतरित हुए है और कोई किस गति से तो सब एक जैसे कर्मसंस्कारों से युक्त हो ये सम्भव नहीं लेकिन हम सबके विचारो को महत्व दें अपने विचारों का आग्रह न हो हम में ये हमें अनेकांत का सिद्धांत सीखाता है जो भगवान महावीर की हम पर अनुकम्पा करके दी हुई महत्वपूर्ण पद्दति है ।
सब जगह सामंजस्य बैठाने में बहुत उपयोगी है। अनाग्रही चेतना के विकास से ये सब सम्भव है। हम अपने साथ साथ दूसरे के साथ तालमेल बैठाकर सहज जीवन का लाभ ले सकते है सहजता से। स्वभाव आदमी का खुद का भाव होता है । स्वभाव में रहने वाले को ना किसी प्रकार का दुराव होता है और ना ही कोई तनाव होता है ।
इसलिए खुद के साथ जीने की आदत डालो और खुद के मंथन से ही कोई सुखद नवनीत निकालो ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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