जिन्दगी के उतार – चढ़ाव में कभी कुछ कभी कुछ परिस्थिति आती रहती है उस समय लोग दिमाग़ हरदम भारी रहने की शिकायत करते हैं । साथ में कहते हैं इतनी उलझने भरी हुई है कि अब तो सहने की जिन्दगी के सफ़र में आगे बढ़ने की हिम्मत ही टूट गई है।
इस स्तिथि को हम ऐसे समझ कर सात्विकता से परिपूर्ण रह सकते है कि आकस्मिक परीक्षा का नाम सुनते ही बचपन में हम घबरा जाते थे इसलिए हडबड़ाहट में फ़ेल हो जाते थे । और जैसा की प्राध्यापक महोदय ने प्रश्नपत्र थमा दिया जिसमें सिर्फ़ एक काला बिन्दु ,शायद सभी विद्यार्थी की तरह हम भी अपनी शक्ती उस बिन्दु के उत्तर को खोजने में लगा रहे हैं ।
जबकि 99% ख़ाली सफ़ेद पेपर पर ध्यान नही दिया पर आज हम इसको गहराई से सोचे तो यह सफ़ेद पेपर और कुछ भी नही हमारी ज़िंदगी हैं। और वह छोटा सा काला बिन्दु समस्या है जो ज़िंदगी का एक छोटा सा हिस्सा होती हैं लेकिन हम अपना पूरा ध्यान इसी पर लगा देते हैं।
देखा जाए तो हर समस्या का समधान हैं दिन रात परेशान रहना या चिंता कभी कोई पैसों का रोना रोता रहता है,कोई दूसरे की छोटी सी गलती को अपने दिमाग में रखे रखता है आदि – आदि ।
हम क्यों उस भगवान के अपार आशीर्वाद को भुल जाते ना कभी उसको धन्यवाद देते हैं। देंगे कैसे हम तो उस पेपर के एक काले बिन्दु की तरह समस्या पर अटक गए हैं जबकि ज़िंदगी की उन 99% चीजे की तरफ सचमुच हमारे जीवन को अच्छा बनाती हैं।
क्यों ना हम अपनी उलझनो से निकल विचार पर नियंत्रण रखकर अपनी जिन्दगी के सफर को आसान सुगम बना ले जिससे ज़िंदगी में आए कभी भी हर आकस्मिक टेस्ट का मुक़ाबला कर आगे बढ़ते रहे । और जिन्दगी के सफ़र में दिमाग में इधर उधर के विचारों का लगेज जितना कम होगा हमारी जिन्दगी का सफर उतना ही आसान सुगम होगा।