आज के समय में मैंने यह देखा , समझा अनुभव किया है कि अक्सर मानव कुछ भी करने से पहले कहते हैं कि लोग क्या बोलेंगे ? दूसरे क्या सोचेंगे ? आदि – आदि आदतन इस चिन्ता से ग्रस्त हैं । कहते है कि दुनिया चढ़ते हुए को भी हँसती है व उतरते हुए को भी हँसती है ।
यह सबसे बड़ा रोग है लोग क्या कहेंगे । सबसे प्रधान कर्म है, जब मजदूरी में श्रम है, तो परिश्रम में कैसी शर्म है । श्रम करने में शर्म क्यों?कोई काम छोटा बड़ा नही होता, बल्कि हमारा नजिरया जिस कारण हम श्रम को करने में शर्म महसूस करते है |
असल मेंये बात, झिझक, नाम, मान लोग क्या कहेगे से आता है | लोग क्या कहेंगे इसी उधेडबुन में हम अपना जीने का तरीका क्यों बदलें , दुनिया से डरकर जिया तो जीने का मकसद व्यर्थ हो जाएगा ।
अपना आत्मविश्वास व आध्यात्मिक तौर तरीके से जिऐं फिर लोग क्या कहेंगे परवाह नहीं ।लोग क्या कहेंगे इस जुमले की तरफ ध्यान मत दीजिये |जब तक सांस है टकराव मिलता रहेगा| जब तक रिश्ते हैं घाव मिलता रहेगा ।
पीठ पीछे जो बोलते हैं, उन्हें पीछे ही रहने दो| लोग क्या कहते है क्या करते है इस बात की नकल मत करो, हमें जो करना है उसी दिशा में अपने चरणों व कदमों को धरो ।
हमें क्या करना है इस बात का चिंतन अपने विवेक से करना है, अपने जीवन के हर कार्य का निर्णय लेने में किसी से नहीं डरना है ।जो स्वस्थता, मस्तता व व्यस्तता के साथ – साथ आत्मस्त्तता का अभ्यासी होता है, वही इस दुनियां में सबका विश्वासी होता है ।
अगर हमारे कर्म, भावना और रास्ता आदि सही है तो गैरों से भी लगाव मिलता रहेगा | इसीलिए मन की भी सुनें व सकारात्मकता से आगे बढते रहें तो सफलता निश्चित मिलेगी । इसलिये अगर हमे जिन्दगी में कुछ खास करना है तो अपनी यह बनाई हुई यह कारावास रूपी सोच त्यागे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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