हमारे देश में खेती किसानी की दुनिया में महिलाओं की भागीदारी आज भी कम पाई जाती है। लेकिन अगर किसी महिला को पुश्तैनी खेती में काम करने का मौका मिलता है तो वह इस क्षेत्र में भी कभी पीछे नही हटती है।
आज हम पंजाब की एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं जो अपने पिता के साथ मिलकर पुश्तैनी जमीन पर जैविक खेती के तरीके से खेती कर के अपने उत्पाद को प्रोसेसिंग करके आज वह बाजार में भी पहुंचा रही है।
हम बात कर रहे हैं पंजाब के लुधियाना में रहने वाली प्रियंका गुप्ता की, जो पिछले 5 साल से अपने पिता बद्रीदास बंसल की खेती बाड़ी को संभालने का काम कर रही है। प्रियंका अपना घर परिवार संभालने के साथ-साथ अपने पिता का भी ध्यान रखती हैं और खेती भी सम्हाल रही हैं।
इनके पिता की जमीन संगरूर में है, इसलिए वह लुधियाने से संगरूर का ट्रेवल करती रहती हैं। पिता बेटी की यह जोड़ी अपनी उपज को खुद ही प्रोसेस करके सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। आज संगरूर और लुधियाना के आसपास के क्षेत्र में इनके उत्पाद काफी लोकप्रिय हैं।
बता दें कि प्रियंका गुप्ता ने फाइनेंस में एमबीए किया है और 4 एकड़ खेत का नाम उन्होंने “मदर अर्थ ऑर्गेनिक फर्म“ रखा है और इसी नाम से वह अपने जैविक उत्पाद के प्रोडक्ट को बाजार में पहुंचा रही हैं।
प्रियंका गुप्ता आज जैविक तरीके से दाल, मक्का, चना, ज्वार, अलसी, बाजरा, तिल, हल्दी, हरी मिर्च, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, आलू उगाती हैं। इसके अलावा उनके फॉर्म में आम, अमरूद, आंवला, शहतूत, तुलसी, नीम, मोरिंगा के पेड़ भी देखने को मिल जाते हैं।
प्रियंका गुप्ता बताती हैं कि उनके पिता को हमेशा से खेती करने का शौक रहा है। वह बिजली विभाग में काम करते हुए भी खेती किया करते थे। अभी कुछ साल पहले वह रिटायर हो गए हैं। नौकरी करने के दौरान भी वह घर के पीछे खाली जमीन में सब्जियां उगाते थे।
प्रियंका गुप्ता बताती हैं कि पटियाला में उनके घर के पास खाली जमीन में ही उन्होंने ऑर्गेनिक खेती करनी शुरू की थी। वह नौकरी के साथ जो भी समय मिलता वह थोड़ा बहुत फल सब्जी जैविक तरीके से उग आते थे और उसे अपने जरूरत भर का घर में रखते थे बाकी अपने रिश्तेदारों में बांट देते थे।
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इसी बीच उन्होंने संगरूर में अपना घर बनवा लिया और रिटायरमेंट के बाद वहीं पर बस गये। प्रियंका बताती है रिटायरमेंट आते आते हो उनकी मां का निधन हो गया, तब उनके पिता ने खुद को खेती में पूरी तरीके से समर्पित कर लिया क्योंकि उन्हें खेती में खुशी मिलती है।
प्रियंका गुप्ता बताती हैं कि उनके पापा ने कभी भी खेती को पैसा कमाने के जरिए के रूप में नही देखा, बल्कि उनकी कोशिश यह रही कि वह खुद भी अच्छा खाएं और दूसरों को भी शुद्ध और स्वस्थ चीजें खिलाये।
आज उनकी उम्र 70 वर्ष से भी अधिक है। प्रियंका अपने पिता की खेती का काम भी संभाल रही हैं और अपने पिता का ख्याल भी रखती हैं और इस बात का ध्यान रखते हैं कि सब कुछ प्राकृतिक तरीके से उगाया जाये।
प्रियंका गुप्ता बताती हैं कि शुरुआत में उनके पिता अपनी उपज को बेचने के लिये बाजार नही भेजते थे बल्कि लोगों को बांट दिया करते थे लेकिन जब उनकी बेटी ने हाथ बटाना शुरू किया तब वह अपनी उपज को खुद प्रोसेस करके बाजार में पहुंचाने लगे। खेती को प्रोसेसिंग से जोड़ने का काम प्रियंका ही करती है।
इस बारे में प्रियंका गुप्ता बताती हैं एक बार उनके खेत में हल्दी के उपज इतनी अच्छी हो गई थी कि सब जगह बांटने के बाद भी काफी हल्दी बच गई, तब उन्होंने कच्ची हल्दी का अचार बनाया, जिसने भी उसे चखा ऑर्डर देने लगा और तब उन्हें लगा कि वह अपनी उपज को प्रोसेस करके बेंच भी सकती हैं। उसके बाद उन्होंने हल्दी के साथ-साथ लहसुन और मिर्च का भी अचार बनाया जो हाथों हाथ बिक गया।
आज मौसम के हिसाब से प्रियंका गुप्ता 25 से 30 तक के उत्पाद बना रही हैं और किचन से ही प्रोसेस होकर यह सब तक पहुँच रहा है। वह सब कुछ खुद अपने हाथों से बनाती हैं।
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प्रियंका इस बारे में बताती हैं कि वह हरी मिर्च, हल्दी, लहसुन, गाजर, मूली, करौंदा, आम जैसे फल और सब्जियों से अचार बनाती हैं और सॉस, जैम, ज्वार, बाजरा और मक्का जैसी फसलों के आटा और बिस्किट भी बना रही हैं।
प्रियंका गुप्ता ने इसके लिए बकायदा प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग भी ली हुई है। प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग से रेसिपी को बैलेंस करने की सीख मिली। उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से फूड प्रोसेसिंग में ट्रेनिंग ली हुई है।
प्रियंका गुप्ता बताती है कि आज वह अपने पिता के साथ 4 एकड़ की खेती और प्रोसेसिंग के काम के अलावा अपने बच्चों की पढ़ाई पर भी ध्यान देती है। उन्होंने गांव की 4 से 5 महिलाओं को रोजगार पर भी रखा है। इसके अलावा जरूरत के अनुसार और ज्यादा महिलाओं को भी बुलाते हैं।
अगर इनके ग्राहकों की बात करें तो आसपास के लोग ही इनके ग्राहक हैं और वही ज्यादातर चीजों को खरीद लेते हैं। इसके अलावा 4 रिटेलर्स प्रोडक्ट हैं जिनकी मांग हमेशा बनी रहती है। आज उनके पिता को जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए जाना जाता है।