पहले घर का खर्चा चलाने के लिए बने रिक्शा चालक फिर जूतों की मरम्मत की दुकान खोली और आज कई कंपनियों के मालिक हैं और उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ से भी अधिक है । हम बात कर रहे हैं हरिकिशन पिप्पल की कामयाबी की ।
दोस्तों हरिकिशन का जन्म बेहद गरीब परिवार में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था वो एक Dalit family से थे इसलिए उन्हें Untouchability और Casteism भेदभाव का भी सामना करना पड़ा लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सारी चुनौतियों का डटकर सामना किया और कामयाबी हासिल की । एक वक्त ऐसा भी था जब उनके परिवार के पास दो वक्त का खाना भी नहीं होता था ।
उनके घर की हालत काफी दयनीय थी । बचपन से ही उन्होंने Hard labor work करना शुरू कर दिया था । हालांकि उन्हें शिक्षा के महत्व का एहसास था और वे हर हाल में शिक्षा पाना चाहते थे । घर की हालत ठीक न होने की वजह से अपनी पढ़ाई का खर्चा खुद उठाने के लिए उन्होंने मजदूरी करने का रास्ता अपनाया, दिन भर मजदूरी करते और रात के समय पढ़ाई ।
हरकिशन बताते हैं कि वो गर्मी के समय में आगरा के हवाई अड्डे पर खस की चादरों पर पानी डालने का भी काम करते थे जिससे उन्हें हर महीने ₹60 मिलता था ।
हरकिशन के पिता की एक जूतों की मरम्मत की दुकान थी लेकिन जब हरिकिशन दसवीं कक्षा में थे तभी उनके पिता अचानक से बीमार पड़ जाए और इस तरह से दुकान से होने वाली आमदनी भी बंद हो गई और परिवार का खर्चा चलाने की जिम्मेदारी हरिकिशन पर आ गई जिसके लिए उन्होंने रिश्तेदारों से रिक्शा मांग कर चलाने लगे ।
वे शाम के समय में रिक्शा चलाते थे और अपने मुंह को ढक लेते थे जिससे उन्हें कोई पहचान न सके लेकिन कुछ ही महीनों बाद लंबी बीमारी के बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई और उनकी मां ने उनकी शादी कर दी । जिससे परिवार की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई तब उन्होंने आगरा की एक फैक्ट्री में ₹80 की मजदूरी पर मजदूरी करना शुरू कर दिया ।
Social, economic and family दबाव के बावजूद हरिकिशन ने अपने सपनो को जिंदा रखा इसमें उनकी पत्नी ने भी उनका साथ दिया । साल 1975 में उन्हें बैंक से ₹15000 का लोन मिल गया लेकिन पारिवारिक कलह की वजह से उन्हें अपना पुश्तैनी मकान छोड़कर किराए पर कमरा लेकर रहना पड़ा । शुरू में उन्होंने जूते बनाने का काम बहुत छोटी स्केल शुरू किया ।
फिर उनकी की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बना State Trading Corporation से मिले 10000 जोड़ी के आर्डर का । जिसने हरकिशन की जिंदगी बदल दी और वो सफलता की ऊंचाइयों पर चढ़ने लगे ।
इसी के बाद उन्हें जो भी मुनाफा हुआ उससे उन्होंने हेरिक्शन ब्रांड लांच किया जो की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जूते का ब्रांड बन कर उभरा और यही उनका पहचान बन गया ।
वो कम दाम में बेहतरीन जूते उपलब्ध कराते थे और इसलिए जल्दी अपने काम के बदौलत उनकी पहचान बन गई और उन्हें बाटा कंपनी से भी ऑर्डर मिलने लगी । इसके बाद उन्होंने पीपल्स एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी बनाई और भारत में अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के लिए जूते बनाने का काम शुरू कर दिया ।
इसी के साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों में भी काम किया । उन्होंने अग्रवाल नाम से रेस्टोरेंट खोलना पहले शुरू में दलित व्यक्ति द्वारा अग्रवाल नाम से रेस्टोरेंट खोलने पर विरोध भी हुआ लेकिन वो जल्दी सफलता की बुलंदियों पर पहुंच गया । इसके बाद हेल्थ सेक्टर क्षेत्र में उन्होंने 2001 में हेरिटेज हॉस्पिटल की नींव रखी और पब्लिकेशन फर्म हमें भी अपने हाथ आज़माए ।
हरिकिशन की काबिलियत और दूरदर्शिता की वजह से उन्होंने कई क्षेत्रों में कामयाबी पाई और एक सफल व्यवसायी के रूप में अपनी पहचान बना ली । आज के समय में उनकी कंपनी का टर्नओवर 100 करोड़ से भी अधिक है ।
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है जिंदगी में कितनी भी मुश्किल और चुनौतियां आएं लेकिन लक्ष्य प्राप्त करने की ललक हो तो सफलता जरूर मिलती है ।
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