जिसका मन मस्त है उसके पास जो ही है वह समस्त हैं । क्योंकि वह अपने पास है जिसमें प्रसन्न है । अगर धन से सुख मिलता तो धन्ना सेठ रात को मख़मल के ग़द्दे पर करवटें नहीं बदलते और सब कुछ होते हुए भी बिना चीनी की चाय और उबली हुयि सब्ज़ी नहीं खाते।
धन से ही भगवान मिलते तो भगवान स्वयं उस सुदामा को गलियों में ढूँढने नहीं जाते।सुदामा के पास धन नहीं था। वो अपनी फ़क़ीरी में ही बहुत मस्त रहता था।
फिर भी भगवान श्री कृष्ण उनको लेने स्वयं गलियों में गये और उनका पाँव धोये। एक बात स्मरण रहे कि जंहा धन का आकर्षण होगा वंहा मोह होगा, भय होगा और ना जाने कितने प्रकार के विकार मन में होंग़े।
जंहा धन के प्रति आसक्ति नहीं, वंहा ना विकार होगा,ना किसी के प्रति मोह और ना जीवन में भय।मनुष्य जीवन में धन बहुत ज़रूरी है, उसके बिना जीवन नहीं।
पर साथ में यह भी याद रखो कि प्रभु ने जो दिया उसी में संतोष। जो दिया है उससे भी हम अपना जीवन यापन कर सकते हैं। जब भी देखता हूँ किसी को हँसते हुए तो यकीन आ जाता है की खुशियों का ताल्लुक दौलत से नहीं होता हैं ।
जिसका मन मस्त है उसके पास समस्त है । इस धरती पर कोई ऐसा अमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके । इस लिए हर पल को खुश होकर जियो व्यस्त रहो पर साथ में मस्त रहो सदा स्वस्थ रहो ।
वर्तमान युग में यह भी देखा है यहाँ हर कोई सभी को जानता है पर खुद को नहीं जानता हैं । स्वयं के दोष देखे बिना जीवन में कल्याण नहीं होता है । हमें दूसरों के दोष नहीं देखना चाहिए बल्कि स्वयं के दोष पर ध्यान देना चाहिए ।
अपनी गलती,कमी को स्वीकार किए बिना सफलता के शिखर पर नहीं पहुंच सकते हैं ।हमारी दृष्टिभाव में दोष है तो पहले उसे दूर करना होगा तभी सफलता मिल सकती है ।
अतः जिस प्रकार सूई छेद करती है पर सूत अपने शरीर का अंश दे कर भी उस छेद को भर देता है । उसी प्रकार हमें भी दूसरों के छिद्रों (अवगुणों) को भर देने अर्थात् ख़त्म कर देने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देना चाहिए|
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)