हमारे जीवन में कभी – कभी कुछ बातें इस तरह दिल में उतर जाती हैं जो हमारे ख़यालात ही बदल देती हैं, जिन्दगी की राह और रफ़्तार ही बदल देती हैं। करते हैं ऐसी ही तीन बातों से उनसे दिल की बात मुलाकात करते हैं।
हमारे को किसी से भी बात करनी हो तो फ़ोन करना चाहिये लेकिन प्रभु से बात करनी हो तो फ़ोन की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि उसके लिये हमे ध्यान , साधना , मौन आदि की आवश्यकता होती है । सृष्टि के कण-कण के प्रति हम अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करें।
स्नेहमयी मधुर मुस्कान के साथ एक मौन संवाद स्थापित करें। जिन्दगी की सुखद बुनियाद हमारे अपने सात्विक कर्मों से जुङी है। इसलिए हर पल सकारात्मक भावों से अपने आपको भावित करें। हमारे को फ़ोन से बात करने पर बिल देना पड़ता है लेकिन प्रभु से बात करने पर बिल नहीं दिल देना होता है।
इंसान जितना हल्का होता हैं उतना ऊपर उठता हैं पर हमारा समूचा जीवन अतिअपेक्षा से भरा है। भोजन-मकान-वस्त्र तो न्यूनतम आव्यशक्ताएँ है । शिक्षा- चिकित्सा की सुविधा भी चाहिए पर जब अति हो जाए तो समस्याएँ आती हैं।
सोने के महल में भी आदमी दुखी हो सकता है यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो और झोपड़ी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है यदि ज्यादा पाने की लालसा मिट गई हो तो।
इच्छा की अनन्तता ही प्राणी को दुखी करती है । इसलिये सन्तों के पास अपनी कोई इच्छा नहीं होती और कोई भी बात का ज़िक्र करे तो भी कहते है की प्रभु की जो मरजी हो वह मेरी इच्छा। इस इच्छा में शांति है इसलिये सन्त होते है और हमें इसलिए फटकार लगाते हैं ताकि इच्छाओं पर अंकुश हो।
माया के पीछे जाने वाला बिखर जाता है और प्रभु में रत रहने वाला निखर जाता है। अगर धन से ही भगवान मिलते तो भगवान स्वयं उस सुदामा को गलियों में ढूँढने नहीं जाते। सुदामा के पास धन नहीं था।
वो अपनी फ़क़ीरी में ही बहुत मस्त रहता था फिर भी भगवान श्री कृष्ण उनको लेने स्वयं गलियों में गये और उनका पाँव धोये। एक बात स्मरण रहे कि जंहा धन का आकर्षण होगा वंहा मोह होगा, भय होगा और ना जाने कितने प्रकार के विकार मन में होंग़े।
जंहा धन के प्रति आसक्ति नहीं, वंहा ना विकार होगा,ना किसी के प्रति मोह और ना जीवन में भय।मनुष्य जीवन में धन बहुत ज़रूरी है उसके बिना जीवन नहीं पर साथ में यह भी याद रखो कि प्रभु ने जो दिया उसी में संतोष हो ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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