कई लोग बोलते है धन में आनन्द है । वह इसके तर्क में बोलते है कि अगर पास में धन है , पैसे का जोर है आदि – आदि तो सदा आनन्द ही आनन्द है ।
मान ले अगर यह बात सही है तो यह जिज्ञासा मेरे मन में उत्पन्न होती है कि अमीर आदमी रात को करवट क्यों लेता है , रात को सोने के लिये नींद की गोली क्यों खाता है , रात को दुःखी क्यों रहता है आदि – आदि।
जबकि वह अपने घर में मलमल के गद्दे पर सोता है व एयरकंडीशन कमरे रहता है , घर में काम करने को नौकर आदि सब रहते हैं फिर भी सुख – चैन की सही से नींद ले पाता हैं इसके विपरीत हमने देखा हैं कि गर्मी की रातों में कुछ लोग फुटपाथों पर भी मज़े से गहरी नींद में सो लेते हैं।
अब प्रश्न आता हैं कि आनन्द का सही अर्थ क्या है ? इसके उतर में बताया गया हैं कि वास्तविक आनन्द चिदानन्द की सही से अनुभूति हैं । इसलिये धन में सुख नहीं है ।
सही चिन्तन से देखा जाये तो भौतिक वस्तुओं में मन की क्षणिक तृप्ति है और आध्यात्मिक दृष्टि से आनन्द चिदानन्द की अनुभूति हैं । ध्यान के अभ्यास में हम आध्यात्मिक ज्ञान, (परा विद्या) को प्राप्त करते हैं, जो शाश्वत और अपरिवर्तनशील है।
यह हमारे बौद्धिक ज्ञान (अपराविद्या) से बहुत अधिक भिन्न है।आध्यात्मिक ज्ञान सिखाया नहीं जा सकता, इसे केवल अपने स्वयं के अनुभव से ही प्राप्त किया जा सकता है।
यह अनुभूति के माध्यम से हृदय में स्वयं अविर्भूत हो जाता है, जब व्यक्ति ब्रह्माण्ड सिद्धान्तों का अनुसरण करता है, मंत्र का अभ्यास करता है, ध्यान लगाता है और गुरू का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिये सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम चेतना के सभी स्तरों की खोजबीन करें और उन पर प्रकाश डालें। इसमें चेतन मन, अवचेतन मन और अचेतन मन सम्मिलित हैं। चेतना के इन स्तरों की सही सन्तुष्टि पूरी तरह से प्रदर्शित और विशुद्ध होनी चाहिए।
यह केवल तभी हो सकता है जब हम इसको पूरी जागरूकता के साथ-ध्यान के माध्यम से करें।अतः तब हमारे सर्वोच्च चेतना के द्वार खुलेंगे जिससे दिव्य आत्मा के दर्शन हो सकेंगे। इसीलिए तो कहते कि आनन्द पदार्थों में नहीं हैं असली आनन्द चेतन मन में है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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