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अवचेतन मन : है रतन-धन

अवचेतन मन
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बहुत ही मुश्किल से मिटती है अवचेतन मन पर जमी संस्कारों की सघन परतें। अपनों से मिले दिल के गहरे जख्म भी तो, बहुत आसानी से नहीं भरते। केवल उपदेशों से आदमी बदल जाता तो दुनियां की तस्वीर कुछ ओर ही होती अगर कर्मों का साम्राज्य नहीं होता तो, हमारे अपने सपने भी कभी नहीं मरते।

इन्सान जब तक मन में दृढ़ संकल्प न कर लें कि वह अच्छी आदतों को ही अपने जीवन में उतारेगा, उसके लिए चाहे कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े, वह पिछे नहीं हटेगा तो ही मनुष्य एक नेक इंसान बन सकता है |

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सत्संग का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, जैसे कि हम ज्ञानियों के प्रवचन आदि सुनते हैं तो उस समय बुरी आदतों को छोड़ने का फैसला करते हैं परंतु बाहर आते ही वापस अपने रूटीन में आ जाते हैं, क्योंकि मन बड़ा चंचल होता है। भौतिक सुविधाओं से भरा होता है |

जिस तरह सीढ़ी चढ़ने में ताकत लगती है पर उतरने में कोई ताकत नहीं लगती उसी तरह बुरी आदतों को, मन को उतना समझना नहीं पड़ता है‌ परन्तु अच्छी आदत बनाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है ।

दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति से अच्छी आदतें बनती है, अच्छी आदतें लगती नहीं है, बनानी पड़ती है और बुरी आदतें बनानी नहीं पड़ती लग जाती है |

अच्छा इंसान बनने का मतलब सिर्फ किसी और की नजरों में अच्छा नहीं बनना है, बल्कि अंदर से बेहतर बनना जरूरी है इसके लिए तनाव और गुस्से से दूर रहना, दूसरों की मदद, समय का सही इस्तेमाल आदि स्थाई तत्वों पर गहराई से जाना जरूरी है |

जब पौराणिक सिद्धांत रोज बोले जाते हैं तो कोई दृढ़ वचन उन्हें हमारा अवचेतन मन ग्रहण कर लेता है और साधक को सफलता के सोपान चढ़ा देते हैं इसके परिणामस्वरूप वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वे संयत शान्त मन से रहने को सम्बल देते हैं इसीलिए कहते हैं कि अवचेतन मन रतन धन हैं।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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