विशाल ब्रह्मांड का कण कण हमें सीख देता है अपनी उदारता से। धरती माँ हमें सहना सीखाती है । पानी,अग्नि ,वायु सदैव हमेंमर्यादा में रहना सिखाते हैं आकाश हमें विशालकाय छाती रखकर निस्वार्थ भाव से सबका सहयोग करना सिखाता है |
पर्वत हमें गर्व से ऊंचा सिर हो ऐसा करने कीप्रेरणा देता है | फलों से लदी टहनियाँ हमें विनयपूर्वक झुकना सिखाती है | नदी सदा हमें मिलजुलकर सतत प्रवाहमान रहने कीप्रेरणा देती है इतना ही नहीं खिड़कियां हमे मन के मेल को दूरकर ज्ञान का प्रकाश भरने की प्रेरणा देती है ।
दीवार पर लगी घड़ी हमें समयकी नश्वरता को समझ उसका सदुपयोग करके जीवन सुधारने की प्रेरणा देती है औरभी बहुत सारी जीव और अजीव चीजेँ हमे जीवन में खूब – खूब प्रेरित करती हैं लेकिन हमचेत नहीं रहे। विज्ञान की तरक्की के कारण अन्धाधुन्ध पैसा कमाने की दौड में आजकल इतने कल कारखाने खुल गए हैं कि पर्यावरण पूरा दूषित हो गया है|वनों के कट जाने के बाद प्रतिबंध लगाने से क्या लाभ?
सबको मिलकर प्रकृति की सुरक्षा का इंतजाम करना चाहिए वरना अपने पांव पर कुल्हाडी मारने वाली कहावत सही हो जाएगी |भावी पीढी की चिन्ता जरुरी है |इसीलिए प्रकृति के साथ तालमेल बैठाते हुए चलने का प्रयास करें ।
आजकल आधुनिकता की अंधी दौड़ में सबमें करोड़पति , अरबपति आदि – आदि बनने की होड़ लगी है।इसीलिए वनों को काटकर ,कल-कारखानों से नदियों का जल दूषित करने में लगे हैं ।
पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा सभी झेल रहे हैं ।अगर अब भी मानव सचेत नहीं होता है तो अंजाम भुगतना ही पड़ेगा| सकारात्मक प्रशिक्षण से ही हम अपने मस्तिष्क को उर्वर बनाएं । अज्ञात दिशा मे अपनी जीवन की नैया को व्यर्थ मे न भटकाएं। यह सच है कि वृक्षारोपण से पर्यावरण की विशुद्धि होती है पर इसके लिए कंटीली झाड़ियां नहीं, फल देने वाले पेड़ उगाएं ।
जब हम सही से चेत जाएंगे तब ओर अधिक विनाश के कगार पर से ढहने से बच जाएंगे । बहुत मार्मिक बात स्वर्गीय ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी द्वारा की मैंने चिड़िया पाली,उड़ गई। गिलहरी पाली, वह भी नहीं रही।
पर जब मैंने पेड़ लगाया तो चिड़िया और गिलहरी दोनों वापस आ गई। बहुत मना लिया पर्यावरण दिवस अब ज़रूरत सही से पर्यावरण मनाने की। मनुष्य ने अपने तुच्छ स्वार्थ की ख़ातिर प्रकृति का सीना चीर दिया।
पेड़ क्या काटे धरा का यह आवरण फट गया ,खंड-खंड हो गयी। प्रकृति का विनाश कर प्रदूषित किया । हरियाली को नष्ट करते ही सूरज भी धधक रहा हैं और ओजोन की परत को डस रहा हैं तो धरा अभिशाप देगी ही।
अगर इंसान छांव देने वाले वृक्षों की कद्र ना करे तो धूप में झुलसना उसका अपना नसीब है।क्योंकि पेड़ कटने से नही रहेगी छांव इसलिये क्यों दे हम प्रकृति को घाव। कोंकरीट के जंगल पर नही पनपे कभी ख़ुशहाली क्योंकि मरघट ज़मीन पर आए नही हरियाली ।
पर्यावरण दूषित हो रहा है, खाने पीने में केमिकल मिलाकर जहर दिया जा रहा है, लोग बीमार पड़ रहे हैं। जबकि पहले के लोग तंदुरुस्त रहते थे, और चैन की बंसी बजाते हुए शांति से अपना जीवन बसर करते थे।
भौतिक चकाचौंध से दूर, आओ चलें हंसी खुशी की दुनिया में जहां अपनों का साथ हो , खुशी में भी, गम में भी और वृक्षों की छाँव में हम चैन की बंसी बजाते हुए फिर उसी जमाने में लौट चलें ।
आज की इन परिस्थितियों ने हमें फिर से यह सिखा दिया हैं कि जीवन की बेहतरी विलासता में नहीं किंतु प्रकृति के साथ सही से सामंजस्य बना कर चलने में है । रोके हम इस बढ़ते प्रदूषण को व पेड़ लगा कर रक्षा करे । पर्यावरण का सही से सम्मान करे । जीवनदाता प्रकृति का जिसने हमने पाल पोष बड़ा किया साँसे देने वाली धरती को बचाए हरित वसुंधरा का सपना साकार करे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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