योग का शाब्दिक अर्थ मिलन है।तात्पर्य शुद्ध सात्विक भावों के साथ एकाकार मन हैं । योग मानव के अंतर का गहरा विज्ञान हैं।
मुक्त भावों से जीने और चेतना के उर्ध्वागमन का सहज साधन और संज्ञान योग हैं ।
विचारों को भीतर की ओर मोड़ने का जरिया योग है। जीवन की गुणवत्ता बदलने का शर्तिया साधन योग हैं । योग करना यानी हमारे मन-मश्तिष्क में अच्छे गुणों को स्थापित करना हैं जो हमें सही ग़लत के मार्ग दर्शन में सक्षम बनाता हैं ।
योग हमारे मन मस्तिष्क के स्पंदन को शुद्ध एवं पवित्र रखते हैं एवं इससे स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता हैं । गुरु महाप्रज्ञ जी की कालज़यी देन प्रेक्षाध्यान हैं जो अपने आप में एक अचूक संजीवनी हैं ।
जो भी प्रेक्षाध्यान-स्वाध्याय-योगा रूपी नौका अपने गंतव्य,किनारे,मंज़िल तट पाने आदि में समर्थ रहेगा उसके आत्म सपंदन के भावों में सदैव करुणा बहेगी। स्वस्थ जीवन का वरदान योग हैं । वर्तमान में योग को शारीरिक, मानसिक व आत्मिक स्वास्थ्य व शांति के लिए बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है ।
11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी और 21 जून 2015 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया । प्रथम बार विश्व योग दिवस के अवसर पर कई देशों में योग का आयोजन किया गया जिसमें कई मुस्लिम देश भी शामिल थे।
अतः योग व्यायाम का ऐसा प्रभावशाली प्रकार है जिसके माध्याम से न केवल शरीर के अंगों बल्कि मन,मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बनाया जाता है ।यही कारण है कि योग से शारीरिक व्याधियों के अलावा मानसिक समस्याओं से भी निजात पाई जा सकती है।
योग को नियमित करने से शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य प्राप्त होता है। योग ,ध्यान – प्राणायाम नियमित दिन चर्या से स्वयं स्फुरित का फलित है । योग से हमारा जीवन अनुशासन से रहता है ।
योग से जीवन दीर्घ और स्वस्थ होता हैं वह साथ में शीतलता,निर्मलता आदि भी इसमें उपयोगी होते है । योग की सही परिभाषा चित्त की शुद्धि, मन का ठहराव व विकसित व्यक्तित्व की समग्रता आदि हैं ।
यही मानवीय व्यक्तित्व का योगमय चरमोत्कर्ष हैं ।योग कोई सन्यास नहीं है यह भारत की पुरातन विद्या का शारीरिक, मानसिक एवं सही से भावनात्मक अभ्यास है । जो मानव को मन: शांति, तनावमुक्ति एवं दृढ आत्मविश्वास आदि देता है ।
योगाभ्यास बहुत ही सुंदर प्रथम सीढ़ी है हमारे आत्मकल्याण की और स्वस्थ और आरोग्य जीवन जीने की कला हैं तो हम आज से ही कम से कम जागृत होकर योगाभ्यास करके अपने आपको निरोग बनाएं।
हम मन से ,शरीर से और भावों से तन्दुरुस्त होंगे तो हम अपना और अपने आसपास सभी के जीवनोत्थान में सहायक सिद्ध हो सकेंगे।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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