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इदम न मम : भाग-2

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हमारे द्वारा उत्पन्न जिज्ञासा उस और चलने का पथ है । वह दिमाग की कसरत है और सफलता की और बढ़ते हमारे चरण है। अतः हमारे जीवन में सदैव जिज्ञासा बनी रहे तो कभी भी जीवन में उदासीनता पैदा नहीं होगी ।

वह उम्र भी कभी बुढापे का तकाजा नही करेगी और मन भी सदा बच्चों की तरह ताजा रहेगा। हम देख सकते है कि जितने भी महान और सफल बने है।

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उनके जीवन में जिज्ञासा को बनाये रखना ही उसका रहस्य रहा है। कहते है कि किसी भी कार्य की सही से शुरुआत उसका श्री गणेश ही उसकी सफलता हैं लेकिन पता नही क्यों जिन्दगी मिली है कुछ करने के लिए और हम सोचने में ही गुजार देते है ।

जानते हैं? दुनिया में सबसे ज़्यादा मुश्किल क्या है ? धर्मराज ने बड़ा सुन्दर जबाब दिया है कि सबसे मुश्किल है किसी भी कार्य को प्रारम्भ कर देना। शुरुआत करना ही सबसे मुश्किल है। हम अगर दृढ संकल्प के साथ जब किसी भी कार्य में खड़े हो जाते है तो समझो आधा कार्य तो तभी हो जाता है।

आदमी विचारता बहुत है। कार्य में तो 5% ऊर्जा ही लगती है, 95% तो सोचने में लग जाता हैं इसलिए जो भी कार्य करना है उसकी शुरुआत कहीं से तो करनी ही हैं ।

हमारा जीवन है , वह इस जीवन व्यवहार में ऊँच-नीच भी होती रहती है। हमारे जीवन में कभी किसी से मतभेद के कारण कहासुनी भी हो सकती है।

वह मनों में कटुता बैठ जाती है। बस! जीवन में यही बड़ी भूल होती है। हमें इस तरह ऐसे तो एक से नहीं, दो से नहीं, कईयों से कटुता होती ही रहेगी।

हमारे जीवन की गाड़ी ऐसे में क्या वह कड़वाहट ही कड़वाहट से नहीं भर जाएगी। हम जानें! इसे रोकने में हमारी सजगता ही सहायक होगी ।

वह इसी में हमारी यही समझदारी है कि क्षणिक कड़वाहट को हम वहीं भूल जाएँ। उसे दिमाग में जिंदा ही ना रखें और नया सवेरा , नया जीवन प्रारंभ करें।

हम इस संबंध में जानवरों से सीखें। वे आपस में पूरी ताकत से लड़ते हैं पर कुछ देर बाद ही धूल झाड़ कर सहज से हो जाते हैं। हम अपने जीवन में कड़वाहट-कटुता को कभी मन में न जमाएँ। वह रात गई, बात गई का सिद्धांत सही से अपने जीवन में अपनाएँ।
( क्रमशः आगे)

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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