एक विरल व्यक्तित्व, दार्शनिक व्यक्तित्व,जो स्वयं वीतरागता की भूमिका के आस-पास पहुँच चुके थे,मौलिक चिंतक, लेखक, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन स्व कल्याण के साथ-साथ विश्व की समस्याओ के समाधान में नियोजीत किया।
ऐसे कई गुणों से युक्त वह महापुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी थे । उपनिषदों का भी मानना है कि शब्दों की ध्वनि-तरंगें वायुमंडल और अंतरिक्ष में अनंत काल तक तरंगित होती रहती हैं ।
वह इसी आधार पर विज्ञान लगा हुआ है, इसका संधान करने ताकि विभूतियों के पूर्व में बोले शब्दों का पुनः संज्ञान में लिया जाए।वह जहाँ तक शब्दों की ताकत का सवाल है, कहते हैं शब्दों के उच्चारण से जो कंपन पैदा होता है, उसमें वातावरण को प्रभावित करने की विराट शक्ति होती है।
इतिहास गवाह है कि शब्दों के विशेष संयोजन से , उत्पन्न विशेष राग से आदि – आदि बिन मौसम, उमड़-घुमड़ बादल बरस जाते थे।वह दीपक राग से बिना अग्नि दीप होकर प्रज्ज्वलित हो उठते थे।
हमें शब्द आज भी तो हँसा सकते हैं , हमें शब्द रुला सकते हैं क्योंकि शब्द जादुई प्रभाव डालते हैं। शब्द एक अखूट संपदा हैं इसीलिए हमको जीवन में पहले वाक्संयम, वाक्पटुता और मितभाषिता, मिष्टभाषिता आदि – आदि की शिक्षा दी जाती है ।
आदमी अपने जीवन व्यवहार में भी तो अपने शब्दों से ही पहचाना जाता है, वह उसकी बोली से ही उसकी विद्वता या मूर्खता का आभास हो जाता है।
हमारे जीवन की सच्चाई यानी की—जिंदगी जीने की खोज मे,हम भला जी रहे किस मौज में? जहाँ ना मिल रही खुशियाँ,ना खुशियों का पिटारा है,बस घूम रहे इधर – उधर,बन के सब आवारा है।
( क्रमशः आगे)
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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