स्वामी परमहंस योगानंद ने अपने दृष्टिकोण से सदा आनंद ही आनंद देखा है । उन्होंने एक बहुत गहरी सारगर्भित बात बताई कि अपने दुश्मन में भी परमात्मा को दिन रात देखने की कोशिश करो । उनसे सदा उसी लहजे में व्यवहार और बात करो ।
ऐसा करने से हम मन की शांति भंग करने वाली, प्रतिशोध से भरी अपनी बुरी इच्छाओं को दिलों-दिमाग से खाली करते रहेंगे ।
अभी जो अपने भीतर हम नफरत पर नफरत जमा करके या नफरत के बदले नफरत लौटाने से अपने ही ज़हन में अपनी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक आदि प्रक्रिया को भी भयंकर दूषित कर रहे है ।
वे आगे कहते हैं हम नहीं जानते इससे न केवल हम हमारा जीवन प्रदूषित कर रहे है बल्कि अपने को भी प्रभावित और दूषित कर रहे हैं ।
अतः हम शांत स्वभाव की स्थिति में रहने का प्रयास करे । शांत स्वभाव हमको जीवन में कैसी ही परिस्थिति हो उससे विचलित नहीं कर सकता है ।
इंसान वही श्रेष्ठ है जो बुरी स्थिति में फिसले नहीं एवं अच्छी स्थिति में उछले नहीं क्योंकि कितना मुश्किल है यह तय करना खुद से खुद की दूरी पर इंसान की तो फ़ितरत हैं वह अपना स्वभाव परिवर्तन नही करता , थोड़े से कष्टों में उजागर कर देता हैं।
खीज उठने से या झुँझलाहट से क्या कभी कोई काम हुआ हैं नही ना, तो जंगल जंगल क्यों ढूँढ रहे है । तु मृग अपनी कस्तूरी.. अपने भीतर छिपी अनंत अग्नि शक्ती को बाहर लाओ और कार्य में परिणत करो ।
हम ख़ुद को इतना तैयार कर ले की बाहरी कोई भी वातावरण हमें छुए नही हमारे भीतर शांत सौम्य समता का भाव हो ।
जिससे हमारे जीवन की धारा ही बदल जाएगी और चहुँदिक आनन्दमय शांति ही शांति की बयार बहती नज़र आएगी।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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