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आधुनिकता वरदान या अभिशाप : Aadhunikta Vardaan ya Abhishaap

Aadhunikta Vardaan ya Abhishaap
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क्या ऐसी है आधुनिकता की यह दुनिया ? जहाँ नहीं है अपनों के लिए समय से भरा प्यार । माता-पिता कर रहे है सदैव अपनों के साथ का इन्तजार। हॅस-खेलकर हम परिवार के लिए समय बिताए । पर कैसा छा रहा खुमार ?

खतरे में पङ रहे हैं संस्कार । आधुनिकता की अंधी दौड़ में, इंटरनेट के रंगीन सपनों में, दिन-रात भाग रहे माया के चक्कर में वह प्रकृति का दोहन कर रहे हैं । अंधी दौड़ में हम फंसकर इन मोह- माया के जाल में भूल गए हैं ।

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सुख- शांति और संस्कृति जीवन में । यूं ही बीत जाएगा जीवन और और के चक्कर में । रह ना जाएगा कुछ भी जीवन के अंतिम पड़ाव में । जाएंगे तो केवल अच्छे कर्म साथ में। आधुनिकता के चक्कर में तुम युग के प्रवाह मेँ मत बहो |

अपनी खराब आदतों के कारण से होने वाली असाध्य बीमारियों से सदैव बचकर ही रहो।आधुनिकता का अभिप्राय उस व्यवस्था से हैं जिसमें ओद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कुछ ऐसे तत्व सम्मिलित हो गये हैं जो प्राचीन परम्पराओं में परिवर्तन ला रहैं हैं।

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आधुनिकता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का नाम हैं । जिसमें प्राचीन परम्पराओं के स्थान पर नवीन मान्यताओं को स्थान दिया गया है।आधुनिक शब्द अंग्रेजी के शब्द (Modern) का हिन्दी रूपान्तर हैं जिसका अभिप्राय हैं प्रचलन या फैशन ।

इसमें जो भी समकालीन हैं अर्थात वर्तमान समय में चलन में हैं वही आधुनिक हैं । चाहें वह अच्छा हैं अथवा बुरा । हम उसे पसन्द करते हैं अथवा नहीं। मार्डन शब्द का प्रयोग छटी शताब्दीं में समकालीन तथा प्राचीन लेखों अथवा विषयों में अन्तर करने के लिए किया जाता था।

सत्रहवीं शताब्दीं में आधुनिकता शब्द का प्रयोग सीमित तथा तकनीकी संदर्भ में किया जाने लगा। समाज के अंतिम से अंतिम मूल्यों के अनुसार रहने वाली वस्तु को आधुनिक कहते हैं। उस वस्तु के इस प्रकार के रहने के गुण अथवा स्थिति को हम आधुनिकता कहते हैं।

किसी ने कहा की – आधुनिकता प्रगति, उन्नति की ओर सम्पन्नता तथा अनुकूलन की तात्पर्यता से संबंधित मन की आकांक्षाओं की एक अवस्था ही हैं। आधुनिकता के इस दौर में युवाओं के लिए जिंदगी में सफलता हासिल करना एक बड़ी चुनौती है। वहीं दूसरी ओर सफलता पाने के बाद उसे पचाना भी किसी कला से कम नहीं है।

जैसे हार और जीत किसी भी खेल का हिस्सा है। हमें पता होता है कि आज लोग हमसे निराश हैं और हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाने के लिए ज़िम्मेदारी लेते हैं।इस प्रकार हार पचा पाना वाक़ई में एक कला है।

सृष्टि द्वारा दिया गया बड़ा पेट यह ज्ञान देता है कि भोजन की तरह ही हमें बातों को भी पचाना सीखना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है, वह हमेशा खुशहाल रहता है।जो हर अच्छी और खराब बात को पचा जाते हैं। किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। विज्ञान के अनुसार यह खुशहाली का प्रतीक है।

 

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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