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अति पुत्र-मोह : Ati Putra Moh

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हम देख सुन सकते है कि कही जगह एक पिता के मन पर अपने किसी एक पुत्र के प्रति या सब पुत्रों के प्रति अति मोह की छाया छाई हुई है ।

जिसके कारण वह मदांध हो गया हैं और घर में अशान्ति कलह आदि का माहौल उत्पन्न हो गया है । यह स्वाभाविक है हर आदमी के मन में संतान मोह विशेष होता है।

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एक जमाना था यह मोह पुत्र के लिए अति विशेष होता था। अब प्रायः शिक्षित घरों में पुत्र-पुत्री में कोई विशेष फर्क नहीं रह गया हैं पर शारीरिक संरचना के कारण अभी भी पुत्र मोह थोड़ा विशेष तो किसी किसी के लिये है ही।

जैसा कि कहा गया धृतराष्ट्र का दुर्योधन के प्रति अथाह पुत्र-मोह का ऐतिहासिक उदाहरण जिसके चलते उन्होंने महाभारत जैसी भीषण युद्ध की इस विनाशकारी विभीषिका से भी किंचित भय नहीं खाया और इसका परिणाम यह हुआ कि समस्त कौरव कुल का नाश हो गया ।

घर के बुज़ुर्ग जो कि उम्र में सबसे बड़े हैं।वे अपने विचार और आदेश छोटों पर थोपते हैं।इसमें वे बड़े होने के नाते अपना अधिकार भी समझते हैं।

जब छोटे सदस्य उनकी मानसिकता के अनुसार उनका पालन नहीं करते है तब बड़े होने के नाते उनका Eggo hurt होता है। वह मन अशान्त हो जाता है।

युवा वर्ग इसलिए अशान्त रहता है कि समय पर उनके ज़रूरतमंद सामान की आपूर्ति नहीं होती।अपने हम सफ़र दोस्तों के रहन सहन देखकर उनकी चाहत की लिस्ट लम्बी हो जाती है।

जो कि उसके अभिभावक के सामर्थ्य से बाहर होती है और उनके अंदर हीन भावना और मन अशान्त हो जाता है ।

यही हाल बुज़ुर्गो का है जो समय के अनुसार बुढ़ापा और बीमारियाँ से ग्रस्त हो जाते हैं जिससे वो अपने जीवन की सेवा जो युवा अवस्था में उन्होंने अपने परिवार के लिए की थी , उसी अनुरूप उनकी उनके घर के सदस्य सेवा और देख भाल सही से नहीं करते है तो उनका मन अशान्त हो जाता है ।

हम अपने घर में किसी से अति अपेक्षा नहीं रखे और किसी भी सदस्य से अति मोह नहीं रखे जिससे कि अचानक वियोग का योग बने तो हमारा मन बैचेन ना हो।किसी भी घर के सदस्य से कुछ उम्मीद करते हो तो पहले उस तराजु में अपने आप को मापो।

उस जगह में कितना मैं खरा उतरता हूँ। अतः जीवन के हर पल, हर काम और हर हाल में ख़ुश रहकर जियो।ना किसी से ज़्यादा लगाव और ना अपेक्षा।

इंसान हर पल सांसारिक शांति और आनंद की अनुभूति करेगा। अतः मोह किसी के प्रति हो एक सीमा तक ठीक है लेकिन अति गलत है इसी तरह पुत्र मोह एक हद तक ही स्वाभाविक उचित है ।

हाँ एकतरफा पुत्र-मोह खुलके दूसरे किसी भी सदस्यों के लिए अहित में एकदम अनुचित ही नहीं अनैतिक है। हम सब जानते हुये भी अनजान बनकर मोह में अंधे न बनें।हम सब इससे बाहर निकलें ।यही हमारे लिए काम्य हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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