कहते है की बच्चे भगवान का रूप होते है । क्योंकि बच्चों में छल – कपट कुछ नहीं होता है । बच्चें निर्मल पावन मन के होते हैं । बच्चे सबको प्रिय लगते हैं । कभी किसी बच्चे को सीधे दौड़ते देखा है? ना – ना जाने कितने बार वो गिरा होगा ।
कितनी बार उसका सर फुटा होगा और न जाने क्या – क्या फूटा होगा । फिर भी वह अपनी चोट भूल वो फिर से कोशिश करता हैं । चोट से नहीं वो डरता हैं । एक दिन नन्हे से वह एक दो कदम उठाते – उठाते चलने लगता हैं । फिर दौड़ भी शामिल हो जाता हैं ।
यह सब कोशिश और हिम्मत का ही कमाल है।असफलता से नहीं वो बेहाल है। बच्चे मन के कच्चे होते हैं । उनको हम जैसे ढालेंगे ढल जाएंगे। बचपन के संस्कार उनके जीवन में हर कदम पर काम आएंगे।
सृष्टि के प्रारंभ से ही माता- पिता तो अपने बच्चे से प्यार करते थे और आज भी करते हैं। पहले परिश्रम करना सबसे पहले सिखाते थे या स्वयं ही बच्चे परिश्रम करना सीख जाते ऐसा माहौल होता था।
भौतिक सुख सुविधाएं राजा महाराजाओं के उस समय भी होती थी। गुरु तो राज महल में आकर भी राजकुमारों को शिक्षा प्रदान कर सकते थे पर राजकुमारों को गुरुकुल भेजा जाता था । क्यों? महलों की सुख सुविधाओं को छोड़कर कठिन परिश्रम हो सके व कष्ट सह सके।
सहनशील बन वीर बन सके । भगवान की मूर्ति में हमें सहज ही निश्छल मुस्कराहट दिखती हैं । मानव- मन में यह देखकर देखकर आनन्द की गुनगुनाहट होने लगती हैं । भाग जातें हर ग़म झटपट बच्चें की भोली मुस्कराहट से। क्योंकि बच्चों की मुस्कराहट में न जाने कैसा जादू छिपा हैं ।
जो सबको अपने में क़ाबू कर लेता है । न जाने कितने राज मुस्कराहट में छुपे होते है ।मानव को मुस्कराहट की पहचान होनी चाहिये । माना की सबको अच्छा लगता है और आता है मज़ा मुस्कराहट से ।
लेकिन पवित्र मन से निकली मुस्कराहट को ही सच्चा मानना चाहिये । कुटिल दिल से निकलने वाली सभी मुस्कराहट से सावधान रहना चाहिये । क्योंकि वह मन को भ्रमित कर लेती है । जिससे सच्चाई को पाना आसान नहीं होता हैं । उसी मुस्कराहट का हो जादू।
जो कर दें सबके दुःख को दूर। प्रेम और कल्याण की भावना से भरपूर । आनन्द ही आनन्द भरपूर। नाच उठे मन मयूर । सचमुच बच्चो की मुस्कराहट का जादू है अद्भुत मयूर । कहते है की पूरी दुनियां हमें प्यार करती है अगर मासूम बच्चे सी मुस्कान आँखों मे हो।
आसमान हमारे संग अपना स्वर मिलाता है अगर उङने की चाहत पांखों मे हो। वादियों का नैसर्गिक सौंदर्य हमारी यादों का अमिट हिस्सा बन जाता है । मुश्किल कैसी भी हो दम तोङ देती है । अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हमारी सांसों मे हो । बच्चे देश का सुनहरा भविष्य है ।
बच्चे ही देश के नेता, सैनिक, कर्णधार आदि हैं। इनके कंधो पर ही आगे सबकुछ सारा दारोमदार हैं।बच्चों की मानसिक शारीरिक, सेहत का ख्याल रखना जरुरी हैं। सही पोषण, उच्च शिक्षा मिले आदि इसका भी हमें ध्यान रखना हैं। ये ही देश की संपत्ति है ।
ये ही देश की शान हैं। इनकी कामयाबी से ही अपने देश का मान है। शिक्षा उनका अधिकार हैं। कुछ दशक पहले परिवार संयुक्त और बड़े होते थे। घर में एसो-आराम और नौकर चाकर की इतनी व्यवस्था भी नहीं होती थी।
घर की माताएँ अपने बच्चों को ऐसे ही छोड़ देती और घर के काम में व्यस्त रहती थी । बच्चे गिरते, चोट लगती आदि पर कोई उनको पूछने वाला नहीं होता। थोड़ी देर दर्द सहन करके अपने जीवन में मस्त हो जाता।
वो दर्द सहना ही उनके भावी जीवन में आने वाली समस्याओं की ताक़त होती थी। आज के माहौल ठीक उसके विपरीत है। एकल परिवार, एक या दो बच्चों का परिवार। जब बच्चे कम होते हैं तो उनकी देखभाल इस तरह की जाती है कि जैसे वो कोई पौधे के फूल हों।
उनके अगर छींक भी आये तो दवाइयों का ढेर लग जाता है। वो ऐसे पाले जाते हैं जैसे किसी राज्य के राजकुमार। एक तो वो दर्द समझ नहीं पाते और दूसरा किसी का टोका हुआ उनको बर्दाश्त नहीं होगा।
जब कभी उन बच्चों के जीवन में अति विषम परिस्तिथियों का सामना होता है तो वो उसे झेल नहीं पाते और कोई भी ख़तरनाक निर्णय लेने में संकोच नहीं करते।चाहे बाद में उसका परिणाम कुछ भी हो।बच्चों को संस्कारित करे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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