वो जीवन ही क्या जिसमें उतार-चढ़ाव ना आये। जीवन में बदलाव नहीं आयें । जब प्रतिकूल समय का सही से सामना करेंग़े और उस दर्द को सहने की हिम्मत हम जुटायेंगे तब ही अनुकूल समय की ख़ुशियाँ महसूस कर पायेंगे।
इस जीवन में हर वस्तु परिवर्तन शील है। हर वस्तु में बदलाव होता है । पानी वो ही होता है पर फ्रिज़र में रख देंगे तो बर्फ़ बन जाती है और फ़्रीज़ के बाहर रख देंगे तो वापिस पानी। भगवान ने मनुष्य को वो समझ दी है कि जब समय विपरीत बदलाव का हो तो थोड़ा संयम धारण करे।
मन में यही सही चिंतन करे कि जब एक दिन उदय होने से लेकर वापिस दूसरे दिन उदय तक कितने पहर देखता है। ठीक वैसे ही जीवन में बदलाव आये तो यही चिंतन रहे कि यह भी स्थायी नहीं रहेगा।
हर अमावस्य की घोर अंधेरी रात आयी है तो कुछ दिनो बाद पूनम की चाँदनी भी दिखायी देगी। हम समझे सही से हालात को और जज़्बात को । जीवन में आए उतार-चढ़ाव , धूप-छांव की तरह होते है ।
और अपनी अपनी समझ की बात को । वैसे तो कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है तो कोई पूरी किताब भी सही से नहीं समझता है । क्योंकि हम नहीं भूलते दो चीज़ें चाहे जितना भी उनको भुलाओ । एक घाव और दूसरा लगाव । तभी तो हमारा एक गलत कदम बन जाता हैं नासुर ।
क्यों ना हम करे इस नासूर का विनाश और पहने जीवन आनंद का ताज। यह दुनिया है जहाँ प्रकृति के अनेक रूप हैं- कभी छाँव, कभी धूप है । विभिन्नताएँ यहाँ पग-पग पर हैं । चाहे जीवन हो या प्राकृतिक संरचना यहाँ विविधता के कई स्वरूप हैं । कहीं पथरीले पहाड़ है तो कहीं मरुभूमि है ।
कहीं पठार, तो कहीं समभूमि है । इन विविधताओं में हमें रहना है । इन्हीं में हमें सफल जीवन जीना है । इस तथ्य को आत्मसात् कर विवेक का सही से सहारा लें तो जीवन हमारा खुशगवार हो जायेगा वरना जीना दुश्वार हो जायेगा।
स्तिथि हमारे अनुरूप हो या नहीं , हम समता और सामंजस्य से संतुलन बैठायें । बदलाव को हम जीवन का हिस्सा मान, हँसते-हँसते आगे बढ़ते जायें ।वो कश्ती ही क्या ; जो तूफ़ानों को झेल न पाये , वो इंसाँ क्या जो प्रतिकूलता में घबरा जाये । परिस्तिथियाँ आती हैं । अपना रंग दिखाती हैं ।
हमें कुछ न कुछ सिखा जाती हैं । अत: ये तो हमें बदलाव को तराशने का साधन हैं । हमें प्रगतिशील बनाने का माध्यम है।अत: मानें हम कर्मों का उदय बदलाव को प्रतिकूल स्तिथियाँ जो हमारी शक्ति और हिम्मत को चुनौती है ।उसमें हम पास हुए तो निश्चित हमारी उन्नति है ।
देव गुरु धर्म की शरण सदैव सुखकारी है। अनेको मंत्र बताये गुरुओं ने जो भव भय हारी है । बना सुरक्षा कवच बदलाव का हम अभय मंगलकारी हो जाये।क्योंकि तप संयम त्याग आदि का जो बनाएं रक्षा कवच वह बदलाव सबमें भारी है ।
इससे भाग जाएगा सभी तरह का मौत आदि का भय। और हो जाएगा सही से अच्छा व रासायनिक बदलाव। मन आनंदित बन जायेगा। मौत का भय कभी न सताएगा।
मन हो जाएगा मौत आदि सब होने वाले बदलाव के लिये तैयार । जब होना होगा बदलाव तो बदलाव होगा ही । सुख – दुःख साथ जुड़े हुए है । एक चोगा खोल दूसरा हमको बदलाव का पहनाएगी। आत्मा अजर अमर है न नाश पाएगी। इसलिये परिवर्तनशील जीवन में बदलाव अच्छा ही है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )
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